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बस तुम खुद ना छोड़ना, अपने साहस, अपने "खुद" का साथ - गरिमा अग्रवाल

[Stories and Poetry from the Room of IAS Officers]


गरिमा अग्रवाल खरगोन के समाजसेवी व उद्योगपति कल्याण अग्रवाल व किरण अग्रवाल की छोटी बेटी है। इनकी बड़ी बहन प्रीति अग्रवाल 2013 में यूपीएससी में सलेक्ट हो चुकी है। वो वर्तमान में आईपीओएस के रूप में सेवाएं दे रही हैं। गरिमा बचपन से ही होनहार थीं। स्कूल के समय से इन्हें रोटरी इंटरनेशनल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत अमेरिका में अध्ययन करने का मौका मिला था। गरिमा हमेशा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में लोगों को राहत पहुंचाने की दिशा में कामकरना चाहती थी। गरिमा पहले आईपीएस थी और अब आईएएस हैं। वर्ष 2017 में यूपीएससी की परीक्षा दी तो 241वीं रैंक पर चयन हुआ। आईपीएस कैडर मिला। इसके बाद हैदराबाद में आईपीएस की ट्रेनिंग शुरू कर दी, मगर दिल में अभी भी आईएएस अफसर बनने का ख्वाब था तो ट्रेनिंग के साथ-साथ यूपीएससी की तैयारी करती रही। जून 2018 प्री और सितंबर 2018 में मेंस दी। 27 मार्च 2019 को साक्षात्मकार हुआ और 5 अप्रेल 2019 को आईएएस बनने का सपना भी पूरा हो गया!

भारतीय प्रशासनिक सेवा विभाग सबसे ज्यादा प्रभावशाली माना जाता है। इसमें उम्मीदवार विभिन्न मंत्रालय और विभाग में सचिव स्तरीय पद प्राप्त करते हैं तो वहीं जिलास्तर पर जिलाधिकारी और विभिन्न प्राधिकरणों में आयुक्त पद पर काबिज होते हैं। यही कारण है कि प्रत्यके वर्ष लाखों युवा संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी की ओर से आयोजित की जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा यानी सीएसई में अपनी किस्मत आजमाते हैं। और हम यह अधिकतर पाएंगे की भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी कविताएँ और कहानियाँ बहुत अच्छी लिखते हैं, आइये पढ़ते है गरिमा अग्रवाल द्वारा लिखी गयी कुछ कवितायेँ और कहानियाँ:



[शून्य - गरिमा अग्रवाल]

जीवन भी तू, मृत्यु भी तू,

कार्य तू, कारक भी तू।

ब्रह्मा भी तू, जीवा भी तू,

प्रकृति और पुरुष भी तू। 

     बुद्ध तू, शंकर भी तू,

     कबीर के दोहों मे तू,

     अरस्तू का तू “स्वर्ण मध्य”,

     आर्यभट्ट का अखंड तू!

नर भी तू, नारी भी तू, 

बालक भी तू, वयस्क भी,

राक्षस भी तू, तू देवता,

रक्षक भी तू, भक्षक भी तू।

     तू दरिद्र, तू सम्पन्नता,

     तू कश्मीर, तू स्वतंत्रता।

     हरित भी तू, भगवा भी तू,

     तू युद्ध तो, संधि भी तू।

मत भी तू, मतभेद भी,

विचार है, विचारशून्य भी।

तू रिक्त है, समस्त भी;

संसार भी, निर्वाण भी।  

हर समर, हर द्वंद्व, शून्यता में समाहित है|

स्वभावशून्य, प्रपंच शून्य, तुझमें सब सम्भावित है।।


[मेरा देश गाँवो में बसता है। - गरिमा अग्रवाल]

खेलते बच्चें, खिलते खलिहान के आगे

मेरा काँक्रीट का मकान सुना लगता है।

उसकी ओड़नी के लाल के आगे,

मेरा हर ब्राण्ड फीका लगता है,

चौपालों की चर्चाओं के आगे,

पार्टी का शोर बचकाना लगता है।

सुकून भरी गुलाबी शाम के आगे,

शहरी मॉल धुँधला सा लगता है।

मेरा देश गाँवो में बसता है, 

कितना सुंदर लगता है।

उसकी मेहनत, पसीने के आगे

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