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तू इन सड़कों पे फिरता-सा, किन्ही रातों का कोहरा है - गजल भारद्वाज

[Stories and Poetry from the Room of IAS Officers]


आज शाम फिर,

पत्तों की सरसराहट और पंछियों की गुनगुन सुनती

एक बेंच

मेहसूस किया करती है

एक प्याली गर्म कॉफी सा सूरज।


गजल भारद्वाज, 2016 में आईएएस की परीक्षा पास करने वाली रूड़की उत्तराखंड निवासी है। गजल ने इस परीक्षा के फाइनल मैं 40वी रैंक हासिल की थी। रूड़की के सेंट अन्स स्कूल से इंटर करने के बाद गजल ने पन्त नगर से सिविल मैं बीटेक किया।फिर दिल्ली चली गईं। तीन बार रिटेन मैं वो असफल रहीं। लेकिन चौथी बार उन्होंने इस परीक्षा मैं सफलता हासिल कर ली थी। 


तू इन सड़कों पे फिरता-सा,

किन्ही रातों का कोहरा है

कुछ धुंधला है, कुछ कोरा है।


अभी मेरे कानों की बाली में,

तेरे हाथों की गरमाहट

बरस रही है 

फ़ैज़ के मिसरे- सकिन-मिन किन-मिन।


अभी उलझे हुए मेरे बालों में,

तेरी गालों का इक गड्ढा

की जैसे रक़्स करता है।अभी तेरे लम्स की आहट की गरमाहट से

ये ठंडा चाँद सिहरता है

चौदह दिन पुराना चाँद।


और

गहरे समंदरों की कोलाहल से निकले

तनहा एक जज़ीरे-

सीतेरी आवाज़ 


कभी जो मेरे लिए

कोई नज़्म पढ़ा यूँ करती है

ऐसी ठंडी सीली रातों में,


तो आफिस की देरी के कारण 

मेरी ठंडी हुई रात की कॉफ़ी

फिर से गर्म हो जाती है।


ग़ालिब के मक़ते-सेतेरे लब

अभी भी

मेरे मफ़लर पे बैठें हैं।मुस्कुरा रहें हैं

किन-मिन किन-मिन।




दोपहरी की आंधी के बाद जब शाम को सूर्य की किरण,

जा गिरती है

- खंडहर के ईंट के हृदय पर -

तो एहसास होता है कि,

कुछ भी नहीं रहता

- हमेशा के लिए -

न ईंटें।

न खंडहर।

और न ही आंधी।



एक आवाज़ को

कागज़ पर उतारना चाहता हूँ।

रोज़ ही हर्फ़ आंखों में अटक जातें हैं

पलकों के आस्तां पे,

फ़ितनें किया करतें हैं

और हाथों से जो छू दूँ तो,

लरज़ जातें हैं।


एक आवाज़ को

कागज़ पर उतारना चाहता हूँ।

रक्स करती है वो,

उंगलियों पर,

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