
[Stories and Poetry from the Room of IAS Officers]
"इस नदी की धार से ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है,
एक चिंगारी कहीं से ढूँढ लाओ ए दोस्तों,
इस दिये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।"
[दुष्यंत कुमार]
UPSC की वर्ष 2014 की सिविल सेवा परीक्षा में 13वीं रैंक पाकर हिंदी/भारतीय भाषाओं के टॉपर बने। उत्तर प्रदेश के मेरठ में साधारण पृष्ठभूमि में पले-बढ़े निशान्त ने UPSC में दूसरे प्रयास में सफलता पाई।इतिहास, राजनीति विज्ञान व अंग्रेजी में ग्रेजुएशन और हिंदी साहित्य में पोस्ट-ग्रेजुएशन। यूजीसी की NET-JRF परीक्षा उत्तीर्ण। कॉलिज के दिनों से साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय रहे। दिल्ली यूनिवर्सिटी (D.U.) से M.Phil. की उपाधि। सिविल सेवा में चयनित होने से पहले लोक सभा सचिवालय के राजभाषा प्रभाग में दो साल सेवा की। LBSNAA में IAS की दो वर्ष की ट्रेनिंग के उपरांत JNU से पब्लिक मैनेजमेंट में मास्टर्स डिग्री प्राप्त हुई।
हिंद युग्म/वेस्टलैंड से प्रकाशित उनकी मोटिवेशनल किताब ‘रुक जाना नहीं’ युवाओं में काफी लोकप्रिय है। हाल ही में उसका इंग्लिश अनुवाद ‘Don’t You Quit’ के नाम से प्रकाशित हुआ है।
सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के लिए प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित उनकी बेस्टसेलर किताब 'मुझे बनना है UPSC टॉपर' बेहद लोकप्रिय। इंग्लिश में अनुवाद ‘All About UPSC CSE’ भी लोकप्रिय है। अक्षर (राजकमल प्रकाशन) से ‘सिविल सेवा परीक्षा के लिए निबंध’ नामक पुस्तक सम्पादित।
यूट्यूब व सोशल मीडिया पर निशान्त के लेक्चर/वीडियो काफ़ी लोकप्रिय। उनकी शोधपरक किताब ‘राजभाषा के रूप में हिंदी’ नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत सरकार से और बाल कविता संकलन ‘शादी बंदर मामा की’ प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित।
कविताएँ व ब्लॉग लिखने और युवाओं से संवाद स्थापित करने में रुचि।
भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के 2015 बैच के अधिकारी। पूर्व में कोटड़ा (उदयपुर) और माउंट आबू में SDM और अजमेर विकास प्राधिकरण के आयुक्त रहे। राजस्थान सरकार के वित्त विभाग में संयुक्त सचिव भी रहे। फ़िलहाल पर्यटन विभाग, राजस्थान के निदेशक के पद पर कार्यरत।
आइये जानते है निशांत जैन के जीवन के बारे में, कैसे उन्होंने यूपीएससी में चयनित होकर इतिहास रचा:
उनका जन्म मेरठ के एक साधारण परिवार में हुआ। वे अपने तीन भाई-बहनों में मंझले थे। उनके दादा जी बेहद सरल और ईमानदार आदमी थे और कचहरी में पेशकार की नौकरी करते थे। वे पैदल ही ऑफिस जाते थे और उन्हें हिन्दी-अंग्रेज़ी-उर्दू तीनों भाषाओं की अच्छी जानकारी थी। अपने दादा जी से निशांत काफी प्रभावित रहे। लेकिन उनके पिता एक प्राइवेट नौकरी करते थे और जितना मिलता उसी में संतुष्ट रहते। वहीं उनकी मां ग्रैजुएट थीं। कुल मिलाकर एक साधारण से मध्यमवर्गीय परिवार में निशांत जरूर पले-बढ़े लेकिन माँ की वजह से घर में पढ़ाई-लिखाई पर काफी जोर था। आईएएस बनने के पीछे हर युवा की अपनी कोई न कोई कहानी होती है जब कोई लम्हा किसी के भीतर कुछ करने और कुछ बनने की चिंगारी जला देता है। निशांत की भी अपनी एक कहानी है। यह तब की बात है जब निशांत आठवीं या नवीं कक्षा में पढ़ रहे थे। वे घर का राशन लेने के लिए सरकारी पीडीएस की दुकान पर जाते थे। लेकिन वहां वे देखते थे कि दुकानदार गायब ही रहता। लोगों के मुंह से उसकी हेराफेरी के किस्से भी सुनाई देते थे। दुकानदार के इस रवैये से मायूस जब निशांत अपने राशन कार्ड को देखते तो उन्हें उस पर लिखा होता था, 'खाद्य और रसद अधिकारी।' उस वक्त निशांत की उम्र काफी कम थी, लेकिन फिर भी वे सोचते कि अगर मैं ये अधिकारी बन जाऊं तो सिस्टम की कितनी समस्याएं और अनियमितताएं दूर कर सकता हूं।
इस ख्याल को उन्होंने अपने घरवालों को बताया, उनकी उम्र काफी कम थी तो उनकी बात को गंभीरता से लेने का सवाल ही नहीं था सो ये बात आई-गयी हो गई। उस वक्त मेरठ के डीएम अवनीश अवस्थी हुआ करते थे। उनके द्वारा किए जाने वाले अच्छे कामों के बारे में जब निशांत अखबार में पढ़ते तो उनका भी मन अधिकारी बनने को करता। उन्होंने यह बात अपने बड़े भाई प्रशांत को बताई तो उनके भाई ने उन्हें यूपीएससी की परीक्षा के बारे में जानकारी दी और यह भी बताया कि यह कितनी कठिन परीक्षा होती है। चूंकि निशांत पढ़ने में अच्छे थे और डिबेट-निबंध-क्विज़-काव्यपाठ जैसी गतिविधियों में भी हिस्सा लेते रहते थे इसलिए उनके भाई ने कहा कि उन्हें आगे चलकर इसके लिए प्रयास करना चाहिए।
खैर, निशांत उस वक्त एक सरकारी इंटर कॉलेज से कॉमर्स स्ट्रीम से बारहवीं की पढ़ाई कर रहे थे। पढ़ने में अव्वल होने का नतीजा भी उन्हें मिला और जिले में उन्होंने सबसे ज्यादा नंबर मिले। वैसे तो निशांत को साइंस और कॉमर्स दोनों स्ट्रीम की पढ़ाई अच्छी लगती थी, लेकिन उनका मन ह्यूमैनिटीज के विषयों में लगता था। उन्हें साहित्य पढ़ने में काफी मजा आता था। 12वीं पास करते-करते उनके मन में आईएएस बनने की इच्छा प्रबल हो चुकी थी। तभी तो जहां उनके सारे दोस्त सीए जैसी परीक्षा की तैयारी में लग रहे थे वहीं निशांत ने बीए करने का फैसला कर लिया। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी इसलिए उन्होंने दिल्ली या इलाहाबाद यूनिवर्सिटी जाने के बजाय मेरठ कॉलेज में ही एडमिशन ले लिया।
निशांत ने इतिहास, राजनीति विज्ञान और अंग्रेजी साहित्य विषयों के साथ ग्रैजुएशन किया। कॉलेज के दिनों में वे पढ़ाई के साथ-साथ निबंध, कविता पाठ, वाद विवाद जैसी प्रतियोगिताओं में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते और अधिकतर प्रथम पुरस्कार जीत कर लाते। कॉलेज में वे एनसीसी और एनएसएस जैसे संगठनों का भी हिस्सा रहे। साहित्य और लेखन में रुचि होने के कारण उन्होंने मेरठ कॉलेज की वार्षिक पत्रिका 'अभिव्यक्ति' में संपादक की भूमिका निभाई।
कॉलेज खत्म हो गया था और अब आगे की रणनीति बनानी थी। निशांत अपने आईएएस बनने के सपने को पूरा करना चाहते थे, लेकिन आर्थिक समस्याएं उनकी राह में बाधा बन रही थीं। कॉलेज के दौरान वे अपना खर्च चलाने के लिए किताबों की प्रूफ रीडिंग, क्रिएटिव राइटिंग जैसे पार्ट टाइम काम भी करते रहे। इन्हीं जरूरतों के चलते उन्होंने कुछ समय तक डाक विभाग में असिस्टेंट की नौकरी भी की। इस नौकरी की वजह से उन्हें अपना पोस्ट ग्रैजुएशन प्राइवेट करना पड़ा। लेकिन डाक विभाग की छोटी सी नौकरी ने निशांत को काफी कुछ सिखाया। उन्हें यह समझ आ गया था कि अगर कुछ बड़ा करना है तो रिस्क लेना ही पड़ेगा।
उन दिनों का एक यादगार किस्सा साझा करते हुए निशांत बताते हैं, 'मेरे एक सहृदय सीनियर थे। वह अक्सर मेरा हाल-चाल पूछते और मोटिवेट करते। एक बार उन्होंने मुझसे कहा कि किसी बिजली के बल्ब को अगर एक कमरे में ज़मीन के पास लाकर लटका दिया जाए, तो वह कितनी रोशनी देगा और यदि उसी बल्ब को ऊपर दीवार पर लटकाया जाए, तब वह कितनी रोशनी देगा। दरअसल उनका संकेत स्पष्ट था, यदि तुममें उच्च स्तर पर जाकर योगदान करने की क्षमता है, तो तुम्हें निश्चय ही इसके लिए प्रयास करना चाहिए।' यह बात निशांत के लिए टर्निंट पॉइंट साबित हुई। उन्होंने यूजीसी नेट-जेआरएफ परीक्षा की तैयारी शुरू की और पहले प्रयास में सौभाग्य से सफलता भी प्राप्त कर ली। अब निशांत को आगे की राह दिखने लगी थी। उन्होंने एम.फिल करने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी और जेएनयू की प्रवेश परीक्षा दी। दोनों जगह उनका चयन हो गया। लेकिन उन्होंने डीयू को इसलिए चुना क्योंकि लोगों ने उन्हें बताया कि डीयू कैंपस के पास में ही मुखर्जी नगर है, जो कि सिविल सेवा की तैयारी के लिए जाना जाता है। निशांत ने डीयू में एडमिशन ले लिया और अपने सपनों को सच करने की उम्मीद लिए आख़िरकार दिल्ली पहुँच ही गये।
"डीयू में डेढ़ साल की अवधि में मुझे लगता है कि मैंने बहुत कुछ सीखा। दिल्ली विश्वविद्यालय के अकादमिक माहौल और हिन्दी विभाग के शिक्षकों से जीवन और सोच के आयामों का विस्तार करने की सीख मिलती। साहित्य-आलोचना जगत के बड़े-बड़े दिग्गजों का सान्निध्य मिलना भावभूमि, चेतना और संवेदना का विस्तार करता है।" - निशांत जैन
एम.फिल खत्म करने के बाद ही उन्होंने यूपीएसससी का फॉर्म भर दिया और प्रारंभिक परीक्षा भी दे डाली। साथ-साथ उन्होंने अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश की प्रारंभिक परीक्षा भी दी। तैयारी ठीक-ठाक हो गई थी और हौसला भी था इसलिए उन्हें लगता था कि सफलता मिल जाएगी। अब तक निशांत जीवन की हर अकादमिक और प्रतियोगी परीक्षाओं में पास होते आए थे, यही वजह थी कि उनके भीतर गजब का आत्मविश्वास था।
लेकिन जब प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम आया तो उनका यह आत्मविश्वास टूट सा गया। उन्हें दोनों ही परीक्षाओं में असफलता मिली। जिंदगी में पहली बार निशांत को असफलता का सामना करना पड़ा।
'एक बार को तो ऐसा लगा जैसे सब टूट सा गया। हिम्मत टूट रही थी और मन अवसाद से ग्रस्त होने लगा था। शायद मैं अपनी असफलता को सम्भाल नहीं पा रहा था। यह मेरी यात्रा का बेहद कठिन दौर था। कंफ्यूजन बढ़ रहा था और अपने करियर को डावाँडोल सा महसूस कर रहा था।' - निशांत जैन
प्रारंभिक परीक्षा में असफल होने के बाद जब निशांत को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था तो उनके परिवार और बड़े भाई प्रशांत ने उन्हें भावनात्मक सम्बल दिया और साथ ही विश्वास भी जताया। वे कहते हैं कि परिवार और शुभचिंतक मुझ पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करते थे। इसी बीच असफलता से निराश बैठे निशांत को एक अच्छी खबर सुनने को मिली। दरअसल उन्होंने तैयारी के दौरान ही लोकसभा सचिवालय में अनुवादक पद की परीक्षा दी थी जिसका परिणाम आ गया था और उनका सेलेक्शन हो गया। उन्होंने एम.फिल. का लघु शोध प्रबंध जमा करने के बाद तुरंत नौकरी जॉइन कर ली। इस नौकरी से उन्हें आत्मविश्वास तो मिला ही साथ ही करियर को लेकर एक तरह की बेफिक्री भी मिली। अब उन्होंने फिर से अपनी तैयारी आरंभ कर दी और 2014 में यूपीएससी और यूपीपीसीएस दोनों की प्रारम्भिक परीक्षाएं फिर से दी। इस बार उनकी मेहनत रंग लाई और आईएएस व पीसीएस दोनों की प्रीलिम्स परीक्षा उत्तीर्ण हो गयी। लेकिन अब दिक्कत ये थी कि यूपीएससी और पीसीएस दोनों की मुख्य परीक्षाएं सिर्फ एक माह के अंतराल पर थीं। पर निशांत किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने एक माह के अंतराल पर होने के बावजूद संघ व राज्य लोक सेवा आयोग, दोनों की मुख्य परीक्षाएँ दीं। एक बार की असफलता ने निशांत को काफी कुछ सिखा दिया था। इसीलिए उन्होंने अपनी तैयारी में कोई कमी नहीं छोड़ी। इसका फल भी उन्हें मिला और यूपीएससी के मुख्य परीक्षा के परिणाम में उन्हें सफलता मिली। यूपीएससी की ओर से इंटरव्यू के लिए उन्हें बुलाया गया। इंटरव्यू भी अच्छा हुआ, लेकिन अभी यूपी पीसीएस का मेन्स का परिणाम नहीं आया था और निशांत बैठना नहीं चाहते थे इसलिए वे लगातार परीक्षाएं देते रहे। उन्होंने 2015 की पीसीएस परीक्षा का प्रीलिम्स भी दे दिया था। उसमें भी वे क्वॉलिफाई हो गए थे और अब वे हर रोज रिजल्ट्स का इंतजार करते। 2015 की तीन जुलाई की गर्म दोपहर की बात है। निशांत यूपी पीसीएस की मुख्य परीक्षा देने इलाहाबाद गए थे। हालाँकि इस बीच उन्हें पिछले साल की पीसीएस की परीक्षा की इंटरव्यू कॉल आ चुकी थी। खैर, जब वे इलाहाबाद से परीक्षा देकर दिल्ली लौटे तो उन्हें पता चला कि 4 जुलाई यानी एक दिन बाद ही यूपीएससी के सिविल सर्विस एग्जाम का अंतिम परिणाम आ रहा है। यह शनिवार का दिन था और उस दिन उनके ऑफिस में छुट्टी थी। इसीलिए उन्होंने सोचा कि वे मेरठ में घर पर जाकर ही परिणाम देखेंगे।
4 जुलाई की सुबह निशांत आनंद विहार बस अड्डे से मेरठ की बस पकड़कर घर पहुंच गए। दोपहर में मालूम हुआ कि कुछ देर में ही रिज़ल्ट आने की सम्भावना है। निशांत के घर वाले भी बेसब्री से रिजल्ट का इंतजार कर रहे थे। दोपहर लगभग 1 बजे निशान्त को फोन पर मालूम हुआ कि उनका चयन हो गया है। इस परीक्षा में उन्हें 13वीं रैंक मिली थी और हिंदी माध्यम में पहला स्थान। लंबे अरसे के बाद हिंदी माध्यम का कोई अभ्यर्थी इतनी अच्छी रैंक लेकर आया था। इसके बाद की बातें तो अब इतिहास हैं।
आइये पढ़ते हैं उनकी कुछ कविताएं:
[अभी उजाला दूर है शायद - निशान्त जैन]
दीवाली-दर-दीवाली ,
दीप जले, रंगोली दमके,
फुलझड़ियों और कंदीलों से,
गली-गली और आँगन चमके।
लेकिन कुछ आँखें हैं सूनी,
और अधूरे हैं कुछ सपने,
कुछ नन्हे-मुन्ने चेहरे भी,
ताक रहे