
तेरे खुशबू में बसे ख़त को मैं जलाता कैसे… -राजेंद्र नाथ 'रहबर'
पत्ती पत्ती ने एहतराम किया
झुक के हर शाख़ ने सलाम किया
बढ़ के फूलों ने पांव चूम लिये
तुम ने जब बाग़ में ख़िराम किया।
-राजेंद्र नाथ 'रहबर'
नज़्म 'तेरे खुशबू में बसे ख़त' लिखने वाले राजेंद्र नाथ रहबर उर्दू के प्रसिद्ध शायरों में से एक हैं जिन्हे देश के साथ विदेशों के भी अनगिनित संस्थानों द्वारा विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है। वर्ष 2010 में पंजाब सरकार द्वारा रहबर साहब को पंजाब का सर्वोच्च सम्मान शिरोमणि साहित्यकार सम्मान से समान किया गया था।
राजेंद्र नाथ रहबर का जन्म 05 नवम्बर 1931 को पंजाब के शकरगढ़ में हुआ था जो विभाजन के बाद पाकिस्तान को मिल गया। जिसके बाद रहबर साहिब का परिवार पठानकोट आकर बस गया। रहबर साहिब ने हिन्दू कॉलेज अमृतसर से बी॰ए॰, खालसा कॉलेज पंजाब से एम॰ए॰(अर्थशास्त्र) और पंजाब यूनिवर्सिटी से एल॰एल॰बी॰ की। उन्हें बचपन से जी शायरी का शौक़ था। रहबर साहिब ने शायरी का फन रतन पंडोरवी से सीखा।
उनकी लिखी नज्मों ने उन्हें विश्व स्तर पर ख्याति दिलाई जिसे जगजीत सिंह जैसे कई बड़े - बड़े हस्तिओं ने अपनी आवाज़ दी। मशहूर फ़िल्म निर्माता महेश भट्ट ने रहबर साहिब मशहूर नज़्म को अपनी फ़िल्म 'अर्थ' में फिल्माया है।
आइए पढ़ें उनकी कुछ प्रसिद्ध नज़्मों को :
प्यार की आख़िरी पूँजी भी लुटा आया हूँ
अपनी हस्ती को भी लगता है मिटा आया हूँ
उम्र-भर की जो कमाई थी गँवा आया हूँ
तेरे ख़त आज मैं गँगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ
तू ने लिख्खा था जला दूँ मैं तिरी तहरीरें
तू ने चाहा था जला दूँ मैं तिरी तस्वीरें
सोच लीं मैं ने मगर और ही कुछ तदबीरें
तेरे ख़त आज मैं गँगा में बहा आया हूँ
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ
तेरे ख़ुशबू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे
प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे
तेरे ख़त आज मैं गँगा में बहा आया हूँ