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आज़ाद देश की हालत देख आज़ादी पर शक करने वाले कवि अदम गोंडवी


पिन खुली, टाई खुली, बकलस खुला, कॉलर खुला

खुलते डेढ़ घंटे में कहीं अफसर खुला। 

-अदम गोंडवी


जनता की बात को डंके की चोट पर कहने वाले अदम गोंडवी ने बुराइयों के विरूद्ध जंग का मोर्चा संभाला। जिन्हे पूरा देश अदम गोंडवी के नाम से जानता है उनका वास्तविक नाम रामनाथ सिंह था, आज ही के दिन ७४ वर्ष पूर्व हुआ था।कहते हैं जब वे अपने शेर को पढ़ते थे तो शेर में उभरे उनके जज्बात किसी भी मनुष्य के रक्त संचार को बढ़ा देने के लिए काफी थे, प्रतीत होता था मानो वो एक पल में ही सारी व्यवस्थाओं को बदल देना चाहते थे। उनकी कविताएं किसी अलंकार या रस की व्याख्या नहीं करती थी बल्कि उनकी कविताओं का उद्देश्य जातिओं ,दलितों और गरीबों की दुर्दशा को उजागर करना था। उनकी रचनाएं समय की बंधक नहीं हैं उनकी रचनाएं हर दौर में सत्ता और शासन को चुनौती देने का कार्य करती हैं और निरंतर करती रहेंगी


अदम साहब का जन्म उसी वर्ष हुआ जिस वर्ष देश आज़ाद हुआ था। परन्तु आज़ाद देश की हालत को देख कर उनके इस आज़ादी पर भी शक था जिसपर वे कहते हैं:


सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है ,

दिल पर रख कर हाथ कहिये देश क्या आजाद है।


गाँव की सांवले रंग की युवतियों को वे मोलिसा कहा करते थे : 

उनकी रचनाओं में सबसे लोकप्रिय रही उनकी रचना 'मैं चमारों की गली में ले चलूँगा आपको',जो दलित परिवार की व्यथा ,पुलिस के अत्याचार और दबंग जातियों के लोगो के अनाचार पर आधारित यह कथा है जो अदम साहेब की सामाजिक चेतना को भी दर्शाती है। रंगभेद पर भी वे सीधे तौर पर वार किया करते थे वहीँ गाँव की सांवले रंग की युवतियों को वे मोलिसा कहा करते थे ,जहां वो लिखते हैं :


है सधी सर पर बिनौली 

कड़ियों की टोकरी आ रही है सामने से हरखुआ की छोकरी 

चल रही है छंद के आयामको देती दिशा 

मैं इसे कहता हूँ सरूपार की मोनालिसा   


जब सच बना तंगी की वजह :

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