
यदा-कदा राजधानी शिखर से तल देख लेती है
और मस्त रहती है।
कभी-कभार शकुबाई भी नीचे से ऊपर ताक लेती है
और व्यस्त रहती है।
यही असम जीवन है विषम दृष्टि है,
सोचें तो यह किसकी कैसी विकट निर्मिति है।
शकुबाई भी एक जीवन है एक सृष्टि है,
संस्कार आड़े न आए तो आओ उसे जान लें—
उसका काम क्यों न पहचान लें।
***
शकुबाई खाँटी मूल निवासी है,
बोल-चाल में ठेठ देसी है।
तीन दशकों से झाड़ू मारती हुई—
वह पृथ्वी की चहेती बेटी है।
सड़क ही उसकी रोज़ी है सफ़ाई ही रोटी है।
पवित्रों की पोथी में पंचम वर्ण और खोट्टी है।
अव्वल तो प्रकृति की साफ़ सुघड़ सलोनी पोती है।
कई दशक वह इंडिया में झाड़ू फिराती रही,
अब न्यू इंडिया को साफ़सूफ करती है।
न्यू इंडिया की कूटभाषा में सफ़ाई-सेवा आध्यात्मिक अनुभव है
और शकुबाइयाँ सनातन परंपरा की संवाहक,
जैसे काशी के डोमराज और मिथिला के महापात्र।
गली-सड़क चमकाती शकुबाई कुछ बुदबुदाती है,
कान खड़े कर सुनो तो देसकोस से अपना तुक मिलाती है।
तुक मिलाती घूमती है श्याम बैरागी की राष्ट्रीय कविता—
गाड़ीवाला आया घर से कचरा निकाल...
जोड़ती है शकुबाई पहले दिल से निकाल दिमाग़ धो डाल।
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स्वच्छता का इरादा कर लिया हमने... सुनाती आती है
जब तक कूड़ागाड़ी।
डॉगियों को पॉटी कराते सफ़ेदपोश गंदों को दे चुकती है
तब तक गिन-गिन कर गारी।
कहती है गान्ही के चश्मे से नहीं निकलता इरादा,
यह तो है सरकारी अजायबघर में रखा फटा-पुराना वादा।
शकुबाई का दिमाग़ है चुभते फिकरों का कारख़ाना,
जैसे ही राजधानी से जारी होता है कोई फ़रमान—
वह फिक से हँस देती है,
कोई चुस्त फिकरा कस देती है।
जब आधी रात हुई लॉकडाउन की मारक मुनादी—
तब शकुबाई को हुई बला की हैरानी।
कालेजिया बेटी ने विलगा-विलगा कर बूझाया,
लॉकडाउन में लकडॉन और लकडाउन का असल मानी।
फिर न तालाबंदी न देशबंदी,
शकुबाई ने चट से कह दिया—
यह तो है लकडॉन का खुला खेल फ़र्रूख़ाबादी।
जैसे नोटबंदी थी उच्चश्रेणी की चाँदी
और निम्नश्रेणी की बर्बादी।
जैसे ही शकुबाई लकडॉन बोल गई,
अँग्रेज़ी तो दूर हिंदी भी चौंक गई।
वह तो कामकाजी बोली बोलती है,
छठे-छमाहे भाषा का तड़का भी लगा लेती है।
गाहे-बगाहे चाय टपरी पर सुस्ताती—
अँग्रेज़ी-हिंदी शब्दों को भी पी लेती है।
अपनी चलती-फिरती समझ से लफ़्ज़ों का फरक भी बूझ लेती है,
इसी समझ-बूझ से जटिल ज़िंदगी जी लेती है।
***
मज़े-मज़े में कोई नया शब्द भी गढ़ लेती है,
भले ही वह क्यों न हो उलटबाँसी जैसी!
अचक्के फर्राटे से एक शब्द का जुड़वाँ सच झलका गई,
जैसे खराटे से गली-सड़क चमका गई।
बात सफा है कि लॉकडाउन न्यू इंडिया का लकडॉन हुआ,
लगे हाथ उदास हिंदुस्तान का लकडाउन भी तय हुआ।
तत्सम में शिखर का भाग्योदय और चुनिंदों का सौभाग्य,
बोलीचाली में खट्टू हिंद का दुर्भाग्य ही दुर्भाग्य।