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राम ने तोड़ा रावण का अहंकार, किया रामसेतु को पार !

रावण का करने वध,

किया रामसेतु को पार,

महिमा रामसेतु की कथा की,

जिसे बना दशहरा त्योहार!

हमने आज तक कई बार रामायण से जाना है कि, सीता का अपहरण करने पर श्री राम जी, रामसेतु पर चलकर समुद्र पार कर, श्रीलंका पहुंचे। और रावण का वध किया, जिसे हम दशहरे के रूप में मनाते हैं।

आज हम आपको रामसेतु के पुल के महत्व के बारे में बताएंगे। जहां राम का नाम लिखकर पत्थरों को पानी में फेंका गया लेकिन वो डूबे नहीं बल्कि पानी में तैरने लगे और इस प्रकार लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र के ऊपर पुल का निर्माण संभव हुआ।

रामसेतु की प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए इस पर विचार करना होगा कि भारत एवं श्री लंका के मध्य समुद्र में स्थित सम्पर्क मार्ग का नाम रामसेतु कैसे हुआ एवं इसका वैज्ञानिक पक्ष क्या है? इसके वैज्ञानिक पक्ष को जानने के लिए प्राचीनकालीन समुद्र की स्थिति, इसके मानव-निर्मित होने का प्रमाण, तत्कालीन सेतु – निर्माण – कला, सेतु की माप आदि का उत्तर है। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर ही इसकी प्रामाणिकता को सिद्ध करने की कोशिश कर रहे है।

राम सेतु ब्रिज हकीकत और आस्था :-

राम सेतु ब्रिज, नाम ही भारतीयों की आस्था से जुड़ा हुआ है। ऐसा कम ही होगा जिसने इस नाम के पीछे की कहानियाँ नहीं सुनी होंगी। यह नाम जितना हमारे धार्मिक इतिहास से जुड़ा हुआ है उतना ही महत्व आज के समय में इसकी सुंदरता और वैज्ञानिक खोजों से जुड़ा हुआ हराम सेतु का बोध वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में मिलता है जिसे वाल्मीकि रामायण भी कहते हैं। यह संस्कृत भाषा में लिखी गयी है। वहीँ राम चरित मानस को तुलसीदास के द्वारा लिखा गया है।

इन दोनों ही ग्रंथों में भिन्नताएं एवं समानताएं दोनों ही मौजूद हैं। इसके अलावा राम सीता से जुड़े ग्रंथो का मुख्य आधार वाल्मीकि रामायण ही है।साधारण शब्दों में कहें तो- रावण के द्वारा सीता जी के अपहरण के बाद राम, सीता जी की खोज में निकलते हैं। इस खोज में वह भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे आकर रुक जाते हैं। उनके सामने समुद्र होता है। जो सीता जी की खोज में बाधक साबित होता है।

सीता जी जहाँ कैद थी उस अशोक वाटिका(रावण के महल) तक पहुंचने के लिए समुन्द्र को पार करना आवश्यक था। सीता जी को देखने के लिए राम जी के द्वारा हनुमान को भेजा जाता है।

उन्हें उनकी शक्तियों का बोध कराया जाता है। इसके बाद हनुमान उड़कर समुद्र पार कर अशोक वाटिका में पहुंचते हैं और पूरी अशोक वाटिका में अपनी पूँछ से आग लगा देते हैं।हनुमान जी के लौटने के बाद समुद्र देव से रास्ता पार कराने के लिए अनुरोध किया जाता है। समुद्र देव के द्वारा उपाय दिया जाता है कि राम नाम लिख कर जो भी पत्थर समुद्र में गिराया जायेगा वह डूबेगा नहीं।

इसके पश्चात भगवान राम की सेना के दो वानर सैनिक नल-नील के द्वारा पुल बनाया जाता है, पत्थ

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