
पुलिस स्मृति दिवस : 62 वर्ष पहले भारतीय पुलिसकर्मियों के पराक्रम को दिखाती घटना।
“जब दुनिया जश्न मनाती है,
तब पुलिस अपना फर्ज निभाती है।”
-अज्ञात
ईश्वर हमारे दुश्मनों पर दया करे ,क्योंकि हम तो करेंगे नहीं यह कथन कई बार हमारे जवानों और पुलिसकर्मीयों ने सिद्ध किया है व जवानों व पुलिसकर्मीयों के पराकर्म और शौर्य का इतिहास बन हमारे समक्ष है।
62 वर्ष पहले भारतीय पुलिसकर्मियों के पराक्रम और चीनी सैनिकों के कायरता को दिखती घटना :
आज पूरा देश पुलिस स्मृति दिवस बना रहा है। ६२ वर्ष पहले घटी एक ऐसी घटना जिसके यादें आज तक धुंधली नहीं हुई। इस दिन देशभर के पुलिस बल, चाहे वो राज्य पुलिस हो, केंद्रीय सुरक्षा बल या फिर अर्धसैनिक बल, सभी एक साथ मिलकर इस दिन को ‘खास’ नजर से देखते हैं। 1959 में चीन से लगी हमारी सीमा की रक्षा करते हुए 21 अक्टूबर को 10 पुलिसकर्मियों ने सर्वोच्च बलिदान दिया था। उन पुलिसकर्मियों के बलिदान के सम्मान में हर साल 21 अक्टूबर को पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता है। चीन की गद्दारी और हमारे पुलिसकर्मियों की जावाजी को आज पूरा देश याद करता है।
घटना से एक दिन पहले 20 अक्टूबर 1959 को बल की तीसरी वाहिनी (थर्ड बटालियन) पूर्वी लद्दाख के ‘हॉट स्प्रिंग्स’ सीमा पर निगरानी कर रही थी। तीन भागों में जवानों की उस टुकड़ी को बांटकर गश्त की जिम्मेदारी दी गई थी। जिसके बाद उसी दिन 20 अक्टूबर 1959 को चीन सीमा पर गश्त को निकली उन ३ में से २ टुकड़ियां लौट आईं पर तीसरी नहीं लौंटी जिसमें दो सिपाही और एक पोर्टर शामिल थे। 21 अक्टूबर की सुबह तक भी जब तीसरी टुकड़ी वापिस नहीं लौटी तो उस खोई टुकड़ी की तलाश के लिए नई टुकड़ी बनाई गई और गायब तीसरी टुकड़ी को खोजने की जिम्मेदारी सौंपी गयी।गायब तीसरी टुकड़ी की तलाश के लिए गठित की गई नई टुकड़ी में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 20 जवानों को शामिल किया गया जिसका नेतृत्व खुद डीसीआईओ सब-इंस्पेक्टर करम सिंह कर रहे थे। करम सिंह ने उस टुकड़ी को भी ३ टुकड़ी में विभाजित कर दिया ताकि अगर कोई एक टुकड़ी मुसीबत में फास जाए तो बाकी की टुकड़ियां उसकी मदद कर सके। खुद घोड़े पर सवार होकर करम सिंह तीनों टुकड़ियों के साथ एक दिन पहले से गायब अपने तीनों जवानों की तलाश में, 21 अक्टूबर 1959 को सीमांत (हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र) क्षेत्र में निकल गतीनो टुकड़ियां अभी कुछ दूर पहुंची ही थी की घाट लगाए सैकड़ो चीनी सैनिकों ने उन पर कायराना हमला कर दिया। चीनी सैनिकों ने ऊंची पहाड़ी पर छिप कर हमला किया था जबकि करम सिंह और उनकी तीनो टीमें निचले हिस्से में हमलावरों के वार की जद में चारों ओर से फंस चुकीं थीं। दुर्भाग्यवश केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 10 बहादुर जवान मोर्चा लेते हुए मौके पर ही शहीद हो गए, जबकि 7 रणबांकुरे बुरी तरह ज़ख्मी हो गए। चीनी सैनिक शहीद 10 जवानों के शवों के साथ घायल 7 हिंदुस्तानी जवानों को भी अपने साथ बंधक बनाकर ले गए। हालांकि इस कायराना हमले में मोर्चा लेते हुए कई हिंदुस्तानी बहादुर जवान खुद को सुरक्षित बचाने में कामयाब रहे थे। इसके बाद भी चीनी सैनिक बाज नहीं आये और कई प्रयासों के बाद 13 नवंबर 1959 को यानी करीब 22-23 दिन बाद हमारे बहादुर शहीद सैनिकों के शवों को लौटाया गया और शहीदों का ‘हॉट-स्प्रिंग्स’ में ही पुलिस सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। देश के लिए सब निछावर कर देने वाले उन पुलिस जवानों के त्याग समर्पण, ईमानदारी, बहादुरी के सामान में हर वर्ष २१ अक्टूबर को पुलिस स्मृति दिवस के रूप में बनाया जाता है। पुलिस बल साहस, संयम की पराकाष्ठा का अद्भुत उदाहरण है, चाहे जो भी समय हो, अपने नागरिकों की सेवा को सर्वोपरि मानते हुए अपने कर्तव्य को ईमानदारी स