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विख्यात इतिहासकार पद्मश्री योगेश प्रवीण - एक परिचय

लखनऊ है तो महज गुंबद ओ मीनार नहीं 

सिर्फ एक शहर नहीं कूच ओ बाजार नहीं 

इसके आंचल में मुहब्बत के फूल खिलते हैं 

इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं

-योगेश प्रवीण


डॉ. योगेश प्रवीण अवध और विशेष रूप से लखनऊ के इतिहास और संस्कृति के एक भारतीय लेखक और विशेषज्ञ थे। उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय से साहित्य में डॉक्टरेट के अलावा हिंदी और संस्कृत में परास्नातक किया था। उन्हें 'इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ लखनऊ' के नाम से भी जाना जाता था। 2003 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए योगेश प्रवीण को भारत का अत्यधिक प्रतिष्ठित पुरस्कार पद्म श्री से नवाज़ा जा चूका है। 


कैसे हुआ इतिहास की तरफ रुख :

अपने एक इंटरव्यू में योगेश बताते हैं कि एक बार किसी शहर घूमने गए तो वहां अलग-अलग शहरों का बखान किया जा रहा था। जिनमे सबसे खराब बखान लखनऊ का था। क्यूंकि वह स्वयं लखनउ से थे इस लिहाज़ से उनको इसका और अफसोस हुआ। उन्होंने सोचा जिस शहर में पहली कहानी लिखी गई.. रानी केतकी की कहानी। जहां पहली नृत्य नाटिका लिखी गई .. इंद्रसभा.. जहां लखौरी की छोटी ईंटों से इमामबाड़ा बना दिया गया.. उसका बखान तो सबसे बढ़िया होना चाहिए। बस यही सोचकर शहर के बारे में लिखना शुरू किया और ऐसा लिखा कि प्रेसिडेंट अवार्ड और पदम्श्री मिला। लोगों ने उन पर पीएचडी की। देश-दुनिया से आज भी जो सैर करने आता है वह लखनऊ को योगेश प्रवीण की नजर से देखता है।


माँ से मिली लेखनी के प्रति प्रेरणा :

प्रवीण के पिता एक लेक्चरर थे औ

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