
मानस-मन्दिर में सती, पति की प्रतिमा थाप,
जलती-सी उस विरह में, बनी आरती आप।
जब श्री राम को वनवास जाने का समय आता है तब उनकी पत्नी सीता साथ जाने का हठ करती हैं और साथ ही राम के छोटे भाई लक्ष्मण भी के लिए अत्यंत निवेदन करते हैं और जाने को तैयार हो जाते हैं। मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित यह महाकाव्य उर्मिला और लक्ष्मण की व्यथा पर ही आधारित है , जिसका प्रथम प्रकाशन 1931 में हुआ था। इसके लिए उन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। इस महाकाव्य में राम के भाई लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के विरह का जो चित्रण गुप्त जी ने किया है वह अत्यधिक मार्मिक और गहरी मानवीय संवेदनाओं से पूर्ण हैं। है हम ये कहेंगे की साकेत राम कटा पर आधारित है परन्तु ऐसे नाइका उर्मिला हैं। इस महाकाव्य में उर्मिला के साथ ही कैकेयी के पश्चात्ताप का भी चित्रण किया।
प्रथम सर्ग
प्रथम सर्ग में गुप्त ने साकेत के भव्यता और सौंदर्यता की व्याख्या की है, जहाँ इंद्रा के समान ही राजा हैं। राजा और प्रजा का सम्बन्ध सौमनस्य एवं सद्भाव का है। राजा के चार पुत्र- राम, लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न हैं। अब राजा की एक मात्रा अभिलाषा है की श्रीराम का का जल्द से जल्द राज्याभिषेक हो जाये।
आगे इस सर्ग में उर्मिला और लक्ष्मण के बिच हास परिहास और प्रेम वार्ता को दर्शाया है जहाँ लक्ष्मण उर्मिला को राम के राज्य अभिषेक की सुचना देते हैं। वहीँ प्रथम सर्ग हमे उर्मिला के सुखी दाम्पत्तिये जीवन का वर्णन है।
दद्वितीय सर्ग
भरत से सूत पर भी संदेह।
बुलाया तक न उसे जो गेह।
इस सर्ग में मंथरा और कैकई का वार्ता वर्णिंत है। जब मंथरा को इस बात की सुचना मिलती है की राम की राज्य अभिषेक किया जा रहा है तब वो परेशान हो जाती है। और कैकई के मन में संशय पैदा करती हुई कहती हैं कि भरत जैसा भाई की अनुपस्थिति में राम का राज्याभिषेक यह सिद्ध करता है कि उन्हें संदेह की दृष्टि से देखा गया है। कैकई के संपूर्ण तन-मन में क्रोध अग्नी सुलग उठती हैऔर कोप भवन में चली जाती है दशरथ के वहाँ आने पर वह उनसे राम के 14 वर्षों के वनवास एवं भरत के राज्याभिषेक की मांग करती है।
इस सर्ग में गुप्तजी ने मंथरा के प्रसंग में तत्कालीन राजनीतिक षडयंत्रों को भी उजागर किया है और भारतीय राजाओं की वचनबद्धता को राज्य के विकास में बाधक भी बताया है।
तृतीय सर्ग
उर्मिला से विदा लेकर लक्ष्मण राम के साथ अपने पिता की वंदना करने जाते हैं जहाँ उन्हें दशरथ कैकई द्वारा लिए वचनो का वर्णन करते हैं ,जिसे राम कोमलता से स्वीकार कर लेते हैं परन्तु लक्ष्मण क्रोधित हो जाते हैं जिन्हे राम शांत करते हैं ,जिसपर लक्ष्मण भी राम के साथ वन जाने की हठ करते हैं। जिसे राम हैं मान जाते हैं परन्तु दशरथ दोनों पुत्रों का वियोग नहीं सह पाते और बार बार मूर्छित हो जाते हैं।
मेरी यही महामति है,
मति ही पत्नी की गति।
तथा- अथवा कुछ भी न हो वहाँ,
तुम तो हो जो नहीं यहां।
चतुर्थ सर्ग
मेरी यही महामति है,
मति ही पत्नी की गति।
तथा- अथवा कुछ भी न हो वहाँ,
तुम तो हो जो नहीं यहां।
चौथे सर्ग में, माँ की व्यथा को दर्शाया गया है जब कौशल्या के सामने राम सम्पूर्ण घटना का वर्णन कर उनसे जाने की आज्ञा हैं। कौशल्या राजनीति में पटु नहीं है, वह एक माँ हैं अतः उन्हें भरत के राज्य-भार सँभालने में कोई आपत्ति नहीं है, परंतु वे राम के वन गमन को रोकना चाहती हैं और इसके लिए वह भीख मांगने को भी तैयार हो जाती हैं।जिसके बाद सुमित्रा वह आती हैं कौशल्या द्वारा भीख मांगने को वे उचित नहीं मानती और उनके इस कार्य से गुस्से से भर उठती हैं। राम उन्हें समझाते हैं और शांत करते हैं।इसके उपरान्त सीता भी राम के सायह जाने के लिए आज्ञा लेती हैं।
आगे बढ़ते हुए कवि ने उर्मिला की व्यथा का चित्रण किया है। जब वे देखती हैं की सीता भी राम के साथ वन जाने को तैयार हो गई हैं तब वे लक्ष्मण से तर्क वितर्क किये बिना ही वन न जाने का सोच लेती है। क्यूंकि वो जानती हैं की लक्ष्मण उन्हें अपने ससथ वन नहीं ले जायेंगे इसलिए वे उनसे हठ कर उन्हें छोटा नहीं बनाना चाहती और वियोग को स्वीकार कर लेती हैं। यह प्रसंग साकेत का एक अत्यंत भावपूर्ण स्थल है जहाँ इसमें युगों से उपेक्षित उर्मिला की महानता कवि द्वाराअत्यंत सहृदयता से अंकित की है। उर्मिला की महानता का अंकन करके उर्मिला के प्रति करुणा पैदा करने में कवि सफल हुआ हैं पर उसने भी उर्मिला के साथ न्याय नहीं किया। महान आदर्शों की परंपरा में एक आदर्श और जुड़ गया। यहां आवश्यकता थी उर्मिला की पीड़ा को अभिव्यक्ति देने की और उर्मिला की देह की चेतना को सार्थकता प्रदान करने की।
अंत में राम लक्ष्मण और सीता तीनो सभी की आज्ञा लेते हुए वन की और जाते हैं।
पंचम सर्ग
पंचम सर्ग में दर्शाया है कैसे नगर वासी उनके रथ के पीछे पीछे चल परते हैं और कैकई द्वारा किये गए इस कर्म की निंदा करते हैं। राम उन्हें बार बार समझा कर वापिस नगर भेजने का प्रयास करते हैं। अयोध्या की सीमा पार कर तमसा नदी के किनारे पहुंचता है। वहां से गोमती और फिर गंगा तट पहुंचा। वहां से राम लक्ष्मण और सीता को निषादराज ने गंगा पार कराई। वहां से राम लक्ष्मण सीता प्रयाग और तत्पश्चात चित्रकूट पहुंचे जहाँ लक्ष्मण ने वहाँ विश्राम कुटिया बनाई और वासियों ने उनका स्वागत किया।
षष्ठम सर्ग
इस सर्ग में उर्मिला की व्यथा को चित्रित किया गया है जब वे लक्ष्मण वियोग में बार बार मूर्छित हो जाती हैं और उनकी सखियाँ उनका धैर्य बाँधने का प्रयास करती हैं। इसके साथ की व्याकुलता और विशवास को दर्शाया गया है की राम लक्ष्मण और सीता सुमन के साथ लौट आएंगे परन्तु जब सुमंत अकेले आते हैं तो