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महाकाव्य कामायनी!!

हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह 

एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।


नीचे जल था ऊपर हिम था, एक तरल था एक सघन, 

एक तत्व की ही प्रधानता, कहो उसे जड़ या चेतन।


-जयशंकरप्रसाद (कामायनी)


हिन्दी साहित्य के महान कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबन्ध-लेखक जयशंकरप्रसाद ने अपने जीवन काल में कई रचनाएं की हैं। अपने कृत्यों से उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की बता दें उन्हें हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक स्तम्भ माना गया है।1936 ई. में जय शंकर प्रशाद द्वारा लिखी महाकाव्य कामायनी प्रकाशित हुई ,तब से आज तक कामायनी हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक लोकप्रिय तथा विवादित और चर्चित पुस्तक रही है।यह प्रशाद जी की अंतिम काव्य रचना थी।बतादें रचनाकार प्रशाद ने इस रचना का प्रणयान प्रायः 7-8 वर्ष पूर्व ही कर दिया था। कामायनी, छायावादी काव्यकला का सर्वोत्तम प्रतीक माना जा सकता है। इस महाकाव्य में चिंता से शुरूकर आनंद तक 15 सर्ग हैं जो, मानव मन की विविध अंतर्वृत्तियों का कौशलता से वर्णन करते हैं। कामायनी की कथा एक कल्पना जिसमें इसके पात्र - मनु‚ श्रद्धा और इड़ा - मानव‚ प्रेम व बुद्धि के प्रतीक हैं । यह महाकाव्य एक प्रतीकात्मक काव्य है जिसमेंं मनु, श्रद्धा, इड़ा, किलात-आकुलि, श्वेत वृषभ आदि क्रमशः मन, चरित्र, बुद्धि, मानव, आसुरी भाव, धर्म के प्रतीक हैं। कामायनी की घटना का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण के आठवें अध्याय में मिलता है। जहाँ इड़ा को बुद्धि का प्रतीक माना गया है और श्रद्धा मन का प्रतीक है।



महाकाव्य कामायनी सार


भारतीय संस्कृति की घटनाओं से जल प्लावन की यह घटना है प्रमुख रहि है । ऐसा माना गया है कि एक निश्चित युग के बाद सृष्टि में प्रलय होता है। और पुनः नए रूप में सृष्टि का प्रारंभ होता है। इसी क्रम में भयंकर जल प्लावन के बीच, हिमालय की ऊंची चोटी पर केवल मनु नौका से पहुंच कर स्वयं को बचा लेते हैं। और बाकी सब कुछ का विनाश हो जाता है । इसके उपरांत वहां श्रद्धा का आगमन होता है। श्रद्धा उसे संबोधित करती है। वो मनु को कर्म करने के लिए प्रेरित करती है। इसके बाद दोनों में प्रेम होता है और फिर विवाह होता है।


जिसके बाद उन दोनों को एक पुत्र की प्राप्ति भी होती है, परंतु इसके बीच मनु का आकर्षण, प्रेम श्रद्धा के लिए कम होता जाता है और वह श्रद्धा को छोड़ कर सारस्वत प्रदेश की ओर चले जाते हैं।और वहां सारस्वत प्रदेश की रानी झड़ा के साथ रहने लगते हैं।


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