
चार बांस चौबीस गज ,अंगुल अष्ट प्रमाण
ता ऊपर सुल्तान है, मत चुके चौहान
-चंदबरदाई
पृथ्वीराज रासो
हिंदी साहित्य का प्रथम महाकाव्य पृथ्वीराज रासो पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर आधारित यह महाकाव्य के रचयिता चंदबरदाई है। बात करें इसके भाषा की तो ढाई हजार पृष्ठों की इस महाकाव्य को हिंदी भाषा में लिखा गया है। चंदरबाई पृथ्वीराज चौहान के बचपन के मित्र और उनके राजकवि थे और उनकी युद्ध यात्राओं के समय वीर रस की कविताओं से सेना को प्रोत्साहित भी किया करते थे। पृथ्वीराज रासो एक विशालतम महाकाव्य है। जो दिल्ली तथा अजमेर के शाशक पृथ्वीराज चौहान का चित्रण है और संपूर्ण कथानक इसी के केंद्र में स्थित है। जिसमें ६९ समय (सर्ग या अध्याय) हैं। मुख्य छन्द हैं - कवित्त (छप्पय), दूहा (दोहा), तोंगर गोत्र तोंगर, त्रोटक, गाहा और आर्या।
पृथ्वीराज का अपमान
पृथ्वीराज जिस समय दिल्ली का शाशक था उस समय कन्नौज के राजा जयचन्द ने राजसूय यज्ञ करने का निश्चय किया और साथ साथ उसने अपनी बेटी राजकुमारी संयोगिता का स्वयंवर भी करने का प्रण किया। राजसूय यज्ञ का निमंत्रण जैचंद ने दूर-दूर तक के राजाओं को भेजा ,पृथ्वीराज को भी उसमें सम्मिलित होने के लिये आमंत्रित किया गया परन्तु पृथ्वीराज और उसके सामन्तों को यह बात नागवारा गुजरी की बहुराजाओं के होते हुए भी कोई अन्य राजसूय यज्ञ करें। इस पर पथ्वीराज ने जयचंद का सम्मान पूर्वक भिजवाया निमंत्रण अस्वीकार कर दिया। इस बात से क्रोधित होकर जयचन्द ने पृथ्वीराज चौहान को निचा दिखाते हुए यज्ञमण्डप के द्वार पर द्वारपाल के रूप में पृथ्वीराज की एक मूर्ति को स्थापित कर दिया।
पृथ्वीराज तक, जब उसके ऐसे अपमान की बात पहुंची तो वे बहुत क्रोधित हो उठा। तभी उसे सुचना मिली की राजकुमारी संयोगिता पति के रूप में पृथ्वीराज चौहान को ही मान चुकी है ,जिसके कारण जयचंद ने उसे राज्य से अलग गंगातटवर्ती एक आवास में भिजवा दिया है।
इन गतिविधिओं के बाद पृथ्वीराज चौहान राज्य के बाहर आखेट के लिए गया महल में राजा की अनुपस्थिति पाकर उसके मंत्री ने एक दासी के साथ दुष्कर्म किया जिसकी सुचना जैसे ही राजा को मिली उसने महल में वापिस लौटने का निश्चय किया।
और कैवास को मौत के घाट उतार दिया। जब कैवास की पत्नी ने चंद से अपने मृत पति का शव दिलाने की प्रार्थना की तो चंद ने पृथ्वीराज से यह निवेदन किया। जिसे पृथ्वीराज ने इस शर्त पर स्वीकार किया कि वह उसे अपने साथ ले जाकर कन्नौज दिखाएगा। चंद के साथ पृथ्वीराज ने थवाइत्त का भेष बना कर कन्नौज की और प्रस्थान किया। जहाँ वे सर्वप्रथम जयचंद के दरबार गए जहाँ जयचंद ने उनका बहुत सम्मान किया। जयचंद ने चंद से पृथ्वीराज के बारे में और उसके कौशलता का वर्णन करेने को कहा ,जिससे सुनने के बाद जयचंद को उसकी झलक थवाइत्त में दिखने लगी। उसका यह शंशय धीरे-धीरे सत्य हो गया और उसने पृथ्विराज को गिरफ्तार करने का निश्चय किया।
पृथ्वीराज और संयोगिता मिलान
भुल्यो रंग सु मीन न्रिप पंगु चढयो हय पुट्टि।
सुनि सुंदरि वर वज्जने चढ़ी अवासह उट् |
दिक्खति सुंदरि दल बलनि चमकि चढंति अवास ।
नर कि देव किंधु कामहर गंग हसंत निवास |
इक्क कहै दनु देव है इक कह इंनुफनिंद ।
इक्क कहें असि कोटि नर इहु प्रिथिराज नरिंद।
सुनि वर सुंदर उभय तन स्वदे कंप सुरभंग ।
मनु कमलिनि कल सम हरिअ घ्रित करने तन रंग |
इधर पृथ्वीराज नगर की परिक्रमा के लिये निकल गया। जहाँ गंगा नदी के किनारे संयोगिता ने एक दासी को उसको ठीक-ठीक पहचानने तथा उसके पृथ्वीराज होने पर अपना प्रेम-निवेदन करने के लिये भेजा। जब दासी ने यह निश्चय कर लिया की वो पृथ्वीराज चौहान ही है तब राजकुमारी ने अपना प्रेम निवेदन उस तक भिजवाया जिसे पृथ्वीराज ने स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन अपने सामवन्तो द्वारा राजकुमारी को बुला लिया जिसकी सुचना जयचंद को मिली । दोनों पक्ष के बीच युद्ध हुआ और पृथ्वीराज ने संयोगिता का अपहरण करके उसे दिल्ली ले आया।
सात घड़ियाल भेद
पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता से विवाह के बाद पृथ्वीराज का ध्यान राज्य और उसकी गतिविधिओं हट गया था। जिसके कारण प्रजा में क