
लगा कुंभ मेला
लगा कुंभ मेला।
ये धरती है यज्ञों की संगम की धरती
यम औ नियम और संयम की धरती
यहीं आके योगी यती ध्यान करते
सुबह गंगा जमुना में हैं स्नान करते
यहां पर न जाने हैं कितने अखाड़े
भभूती रमाए और झंडा हैं गाड़े
यहां कीर्तन और भजन गूंजते हैं
वक्ता प्रवक्ता सभी कूकते हैं
यहां पर विविध भांति होता है खेला
लगा कुंभ मेला लगा कुंभ मेला।
टेम्पो से आए औ बस से हैं आए
तो कुछ गांव से चलके पैदल हैंआए
जटा जूट में कितने दिखते हैं साधु
तो मिलते हैं कितने यहां सर मुड़ाए
यहां तंबुओं बंबुओं की कतारें
यहां सज्जनों साधुओं की कतारें
महावत के अंकुश में ही दिखती हैं
थिरकती हुई हाथियों की कतारें
न समझे कोई खुद यहां पर अकेला
लगा कुंभ मेला लगा कुंभ मेला।
राशन औ पानी लिए कांधे कांधे
चले आ रहे हैं किए राधे राधे
हैं जाड़े के दिन तो रजाई औ कंबल
इसी को समझिए है जीने का संबल
यहां अम्मा बाबू यहां चाचा चाची
सभी आ गए हैं यहां कल्पवासी
धरम की करम की ये है जिंदगानी
भला कुंभ की किसने महिमा है जानी
बहुत धक्का धुक्की बहुत ठेली ठेला
लगा कुंभ मे