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साहित्य मानवता का सबसे बड़ा साक्षी है,जो सदियों तक जीवित रहता है

"साहित्य मानवता का सबसे बड़ा साक्षी है,जो सदियों तक जीवित रहता है"

ललिता लेनिन (17जुलाई,1946) 

ललिता लेनिन एक प्रसिद्ध भारतीय कवियत्री हैं जो मुख्य रूप से मलयालम भाषा में लिखती हैं। उनका जन्म 17 जुलाई, 1946 में केरल के त्रिशूर जिले में हुआ था। ललिता लेनिन मुख्य रूप से के. के ललिता बाई के नाम से जानी जाती हैं। वह केरल विश्वविद्यालय की सीनेट और अकादमिक परिषद, केरल साहित्य अकादमी की सामान्य परिषद, जनशिक्षण संस्थान प्रबंधन बोर्ड, राज्य बाल साहित्य संस्थान के शासी निकाय, राज्य संसाधन केंद्र, और सतत शिक्षा पर केरल राज्य कोर समूह की सदस्य रह चुकी हैं। इसके साथ ही, वे राज्य भाषा संस्थान के शासी निकाय में भी सक्रिय रूप से सम्मिलित थीं। उन्होंने 1971 से ही मुख्याधारा की पत्रिकाओं में कवितायेँ, लघु कथाएं और लेख लिखती रही हैं । उन्होंने वर्ष 1988 से 2010 तक टेलीविजन में भी कला के क्षेत्र में भी अपना अद्वितीय योगदान दिया। उन्होंने विभिन्न टेलीविजन कार्यक्रमों का संपादन किया, जिनमें 'महाबली' और 'तिरुवनंतपुरम दूरदर्शन' के गीत, और 'केरल में पुस्तकालय आंदोलन' पर वृत्तचित्र की पटकथा आदि सम्मिलित हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में 'करिंगिली', 'कर्किडावावु', 'नमुक्कु प्रार्थिक्कम', और 'कदल' (बच्चों के लिए कविताएँ) शामिल हैं। उन्हें अपने साहित्यिक योगदानों के लिए कई सम्मानों से सम्मानित किया गया है। पुस्तक मिन्नू के लिए केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार, कविता के लिए अबुधाबी शक्ति और मुलुर पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं।

बाबूराव बागुल (17 जुलाई,1930 – 26 मार्च,2008)

बाबूराव बागुल भारतीय साहित्य के एक प्रमुख मराठी लेखक और कवी थे। उनका जन्म 17 जुलाई, 1930 में महाराष्ट्र के नासिक जिले में हुआ था। वे भारतीय दलित साहित्य के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक माने जाते हैं। बागुल की पहली महत्वपूर्ण कृति, "जेव्हा मी जात चोरली" 1963 में प्रकाशित हुई थी। इससे पहले भी उन्होंने विभिन्न कार्यों को करते हुए, का

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