
"जो कहानी समाज के विचारों को छूती है, वही कहानी सबसे अधिक प्रभावित करती है।" - भगवतीचरण वर्मा
"जो कहानी समाज के विचारों को छूती है, वही कहानी सबसे अधिक प्रभावित करती है।" - भगवतीचरण वर्मा
बालमणि अम्मा (19जुलाई,1909 - 29सितंबर,2004)
नालापत बालमणि अम्मा मलयालम साहित्य की एक प्रसिद्ध कवित्री थीं। उनका जन्म 19 जुलाई, 1909 को त्रिचूर जिले के पुन्नयुरकुलम में हुआ था। उन्होंने कभी औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की लेकिन मामा की देखरेख और उनके पुस्तकों के संग्रह ने उन्हें एक प्रसिद्ध कवित्री बनने में काफी सहायता की। बच्चों के प्रति उनके स्नेह के कारण उन्हें अक्सर 'मातृत्व की कवित्री' या दादी के रूप में सम्मान दिया जाता है। उनकी कविताओं के कारण उन्हें मलयालम की माता और दादी की उपाधि दी जाती है। उन्होंने बीस से अधिक कविता संग्रह, कई गद्द रचनाएँ और अनुवाद प्रकाशित किए हैं। उनकी पहली कविता "कप्पुकाई" थी जो 1930 में प्रकाशित हुई थी। उन्हें पहली पहचान साहित्य निपुण पुरस्कार के बाद प्राप्त हुआ था। उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाओं में "अम्मा" (माँ), "मुथस्सी" (दादी), और "मझुविंते कथा" (कुल्हाड़ी की कहानी) शामिल हैं। उनकी कविताओं में मानवीय जीवन की संवेदनाएं, स्त्री जीवन और समाज का सजीव चित्रण देखने को मिलता है। उन्होंने स्त्री के विभिन्न रूपों को अपनी कविताओं में उकेरा है। उनकी कविताओं में गहरी भावात्मकता और मार्मिकता होती है, जो पाठकों को गहराई से प्रभावित करती है। उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार, केंद्र साहित्य अकादमी पुरस्कार, सरस्वती सम्मान और भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री शामिल हैं। उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन में अनेक महत्वपूर्ण रचनाएं देकर भारतीय साहित्य को समृद्ध किया।