
"साहित्य समाज का दर्पण होता है" --- प्रेमचंद
विष्णु दे (18जुलाई,1909 – 3दिसंबर,1982)
विष्णु दे बंगाली भाषा के एक प्रमुख कवि, लेखक, निबंधकार और शिक्षाविद थे। उनका जन्म बंगाल के कोलकाता शहर में हुआ था। उनकी साहित्यिक गतिविधियों का सफर विद्यालय के समय से ही प्रारम्भ हो गया था। ‘पुरानेर पुनर्जन्म’ उनके द्वारा रचित पहली कहानी थी जो प्रगति पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। 1933 में उनकी पहली पुस्तक 'उर्बोशी ओ आर्टेमिस' प्रकाशित हुई। उनकी कहानियाँ और कविताएँ प्रगति, बिचित्रा, धूपछाया, और कल्लोल जैसी उल्लेखनीय पत्रिकाओं में निरंतर रूप से प्रकाशित होती रहीं। वह आधुनिकतावाद और उत्तर आधुनिकतावाद के युग के बंगाल के प्रमुख साहित्यकार थे। उनके लेखन में भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं और आधुनिकता का संगम बखूबी झलकता है। वे अपनी रचनाओं में आधुनिकता और परंपरा का मिश्रण बड़ी कुशलता से करते थे। आधुनिक बंगाली कविता की शुरुआत दो विश्व युद्धों के बीच हुई, जब भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन जोर पकड़ रहा था। इस समय, ग्रामीणों और मजदूरों की गरीबी और कुछ अवसरवादी लोगों की अनुचित समृद्धि ने कवियों को नई शैली में लिखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने भारतीय लोककथाओं और परंपराओं में रुचि रखते हुए, कई क्रांतिकारी कविताएं लिखी जो देश और विदेश में होने वाली घटनाओं से प्रेरित थीं। भारत की आजादी के समय बंगाल का विभाजन हुआ, जिसके कारण बड़े पैमाने पर दंगे और पलायन हुए। 1946 में तेभागा आंदोलन शुरू हुआ। इन घटनाओं ने विष्णु दे को बहुत प्रभावित किया और इन कठिन समय के दौरान उन्होंने 'शतभाई चंपा' और 'सैंडवाइपर चॉ आर' लिखीं। विष्णु दे को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रमुख हैं।
राजेश जोशी (18जुलाई,1946)
राजेश जोशी हिंदी भाषा के एक प्रसिद्ध लेखक, कवि, पत्रकार और नाटकार हैं। उनका जन्म 18 जुलाई को मध्य प्रदेश के नरसिंघगढ़ में हुआ था। एक विद्यालय के शिक्षक के रूप में उन्होंने इंदौर और उज्जैन में अपनी प्रारंभिक नौकरी की और कुछ समय तक बैंक में क्लर्क के पद पर भी कार्यरत रहे। इसके पश्चात 1972 में उन्होंने एक स्वतंत्र लेखक के रूप में अपनी साहित्यिक यात्रा प्रारम्भ की। उन्होंने "वातायन", "लहर", "पहल", "धर्मयुग", "साप्ताहिक हि