
सुरेंद्र वर्मा हिंदी साहित्य जगत के उन रचनाकारों में से हैं, जिन्होंने अपनी अनूठी लेखन शैली और विषयों की विविधता से साहित्य जगत में अपनी एक गहरी छाप छोड़ी है। उनका जन्म 7 सितंबर 1941 को उत्तर प्रदेश के झाँसी में हुआ था। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से न केवल नाटकों और कहानियों को समृद्ध किया, बल्कि उपन्यास और व्यंग्य विधा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके शब्दों में न केवल गहराई होती है, बल्कि वे समाज की वास्तविकता को भी चित्रित करते हैं।
साहित्यिक योगदान
एक समर्पित नाटककार के रूप में अपने करियर की शुरुआत करते हुए, उन्होंने अपने नाटक 'सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक' के माध्यम से साहित्य की दुनिया में कदम रखा और अपने साहित्यिक सफर को प्रारंभ किया। यह उनके द्वारा रचित पहला नाटक था, जिसने उन्हें साहित्य जगत में एक मजबूत पहचान दिलाई। यह कहानी 10वीं शताब्दी ईसा पूर्व की है, जो रानी शीलावती और राजा ओकाक के जीवन के इर्द-गिर्द घूमती है। नाटक में 'नियोग' प्रथा को दिखाया गया है, जिसमें गर्भधारण न कर पाने वाली महिलाओं को एक साथी दिया जाता है। रानी शीलावती भी अपनी इच्छा के विरुद्ध इस प्रथा से गुजरती हैं। नाटक की शुरुआत राजा और रानी के इस आघात पर केंद्रित है, जिसे सशक्त कथा और प्रभावशाली संवादों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। उनके नाटकों में यौन-चेतना के साथ-साथ समाज की विडंबनाओं और त्रासदियों का गहरा चित्रण देखने को मिलता है। उनके नाटक केवल सतही जीवन को नहीं छूते, बल्कि जीवन की गहराइयों में जाकर छिपे हुए अंधकार को उजागर करते हैं। "सेतु