
यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा
पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं
-(शिवमंगल सिंह सुमन)
भारत की धरती पर कई साहित्यकारों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने साहित्यिक योगदान से भारतीय संस्कृति को समृद्ध किया है। जिस तरह एक कलाकार अपनी कल्पना को उड़ान देने के लिए रंगों का इस्तेमाल करता है और उन्हें अपने अंदाज में कागज पर उकेर कर लोगों तक पहुंचाता है, उसी तरह एक लेखक शब्दों को औजार बनाकर समाज की विविधता, संघर्ष और उम्मीदों को अपने लेखन में अपने अनूठे अंदाज में उकेरता है । उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर यह जरूरी है कि हम उनके साहित्यिक योगदान को पहचानें और उनकी गहराई को समझें। इन लेखकों ने न केवल समाज के विभिन्न पहलुओं को अपनी लेखनी के माध्यम से सामने लाया है, बल्कि उनकी रचनाएँ आज भी हमें प्रेरित करती हैं और हमारी सांस्कृतिक विरासत को संजोए रखती हैं । उनका लेखन समय के साथ अमर हो गया है और भारतीय साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।
शिवमंगल सिंह सुमन(5अगस्त,1915-27नवंबर,2002)
शिवमंगल सिंह सुमन हिंदी के एक प्रसिद्ध लेखक, कवि और शिक्षाविद थे। उनका जन्म 5 अगस्त, 1915 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के झगरपुर में हुआ था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय के साहित्यकार थे और उनकी कविताओं में देशभक्ति, सामाजिक न्याय और मानवीय संवेदनाओं का समागम देखने को मिलता है। वे महात्मा गाँधी से प्रेरित हुए, और बाद में मार्क्स की विचारधारा से प्रभावित रहे। वे आज़ादी के संघर्ष में भी शामिल थे और उन्होंने चंद्र शेखर आज़ाद की भी सहायता की, लेकिन फिर भी वे कभी किसी विचारधारा के कट्टर अनुयायी नहीं बने। राष्ट्रवाद पर उनकी सोच भी अलग थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि वे किसी विशेष विचारधारा से जुड़ना नहीं चाहते। उनके लिए मानवता हमेशा सर्वोपरि रही।
उनकी प्रमुख रचनाओं में “हिल्लोल”, “जीवन के गान”, “मिट्टी की बारात” आदि शामिल हैं। साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी अमूल्य योगदान दिया है। उन्हें उनके साहित्यिक और शैक्षणिक योगदानों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें “साहित्य अकादमी पुरस्कार”, “पद्म श्री” और “पद्म भूषण” प्रमुख हैं।
उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण, जब उनकी आँखों पर पट्टी बांधकर उन्हें एक अज्ञात स्थान पर ले जाया गया।
शिवमंगल सिंह 'सुमन' के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण क्षण तब आया जब उनकी आँखों पर पट्टी बांधकर उन्हें एक अज्ञात स्थान पर ले जाया गया। पट्टी हटते ही उन्होंने अपनी आँखों के सामने स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा चंद्रशेखर आज़ाद को खड़ा देखा। आज़ाद ने उनसे सीधे पूछा, "क्या तुम यह रिवाल्वर दिल्ली ले जा सकते हो?" सुमन जी ने बिना किसी हिचकिचाहट के इसे स्वीकार कर लिया। यह क्षण उनके जीवन में विशेष था | इसके बाद आज़ादी के दीवानों के लिए काम करने के आरोप में उनके खिलाफ वारंट जारी हुआ। यह घटना न केवल उनके साहस और निष्ठा को दर्शाती है, बल्कि उनके जीवन का एक अविस्मरणीय अध्याय भी बन गई।
उनके द्वारा लिखी गई कुछ कविताएँ
वरदान मांगूंगा नहीं
यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूंगा पर दया की भीख मैं लूंगा नहीं
वरदान मांगूंगा नहीं।
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहूंगा नहीं।
वरदान मांगूंगा नहीं।
क्या हार में क्या जीत में
किंचित