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प्रेमचंद की दुनिया: यथार्थ और कल्पना का संगम

ख्वाहिश नहीं मुझे,

मशहूर होने की,

आप मुझे पहचानते हो,

बस इतना ही काफी है,

अच्छे ने अच्छा,

और बुरे ने बुरा जाना मुझे,

क्योंकि जिसको जितनी जरूरत थी,

उसने उतना ही पहचाना मुझे।

मुंशी प्रेमचंद हिंदी और उर्दू के महान साहित्यकारों में से एक थे, जिन्होंने अपने शब्दों के माध्यम से भारतीय समाज की आत्मा को चित्रित किया। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, लेकिन साहित्य जगत में उन्हें प्रेमचंद के नाम से जाना और सराहा जाता है। उनकी रचनाओं के लिए प्रसिद्ध बंगाली उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें "उपन्यास सम्राट" की उपाधि से सम्मानित किया था। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज की गहरी और यथार्थवादी तस्वीरों को उकेरा। प्रेमचंद की रचनाएँ समाज के निचले तबके के लोगों की पीड़ा, संघर्ष और जीवन के यथार्थ को दर्शाती हैं। उनकी कहानियों में गाँव, किसानों, मजदूरों और निम्न वर्ग की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया गया है।

उनका जन्म 31 जुलाई, 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी के लमही गांव में हुआ था। प्रेमचंद का जीवन बचपन से ही संघर्षों से भरा हुआ था, जिसकी झलक उनकी रचनाओं में भी साफ तौर पर देखी जा सकती है। उनके पिता अजायब लाल डाकखाने में काम किया करते थे और उनकी माता आनंदी देवी एक गृहिणी थीं। उन्होंने मात्र 8 वर्ष की आयु में ही अपनी माँ को खो दिया था। 15 वर्ष की आयु में उनकी शादी करवा दी गयी और शादी के एक साल बाद ही उनके पिता की भी मृत्यु हो गई, इसके बाद उन पर घर की सभी जिम्मेदारियों का बोझ आ पड़ा। उनकी पहली शादी सफल नहीं रही और फिर उन्होंने बाल विधवा शिवरानी देवी से दूसरा विवाह किया, जिन्होंने उनके जीवन के सभी कठिन समयों में उन्हें भावनात्मक सहारा दिया। प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा गांव के एक मदरसे में हुई थी, जहां उन्होंने उर्दू और फारसी सीखी। बाद में, वे वाराणसी के एक कॉलेज में पढाई करने गए, लेकिन पारिवारिक परिस्थियों के कारण वे अपनी पढाई पूरी नहीं कर सके। उनकी साहित्यिक यात्रा उर्दू भाषा में लेखन से शुरू हुई। उनका पहला उपन्यास "असरार-ए-मआबिद" (देवस्थान रहस्य) 1903 में उर्दू में प्रकाशित हुआ। शुरुआत में उन्होंने अपने लेखन में 'नवाब राय' उपनाम का इस्तेमाल किया। उनका कहानी संग्रह 'सोज़-ए-वतन' 1910 में प्रकाशित हुआ, जिसने उन्हें बहुत प्रसिद्धि दिलाई। इस पुस्तक में उन्होंने अंग्रेजी शासन के तहत जनता के शोषण, दुख, दर्द और उत्पीड़न को बहुत विस्तार से व्यक्त किया, जो ब्रिटिश सरकार को पसंद नहीं आया और पुस्तक को जब्त कर लिया गया। इसके बाद उन्होंने 'प्रेमचंद' उपनाम को अपनाया। उन्होंने अपने जीवन में अनगिनत उपन्यास, कहानियाँ, नाटक और निबंध लिखे, जिनमें 300 से ज़्यादा कहानियाँ, 3 नाटक, एक दर्जन से अधिक उपन्यास, अनुवाद और बाल साहित्य शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने सैकड़ों लेख और संपादकीय भी लिखे। उनकी कहानियों और उपन्यासों ने उन्हें काफ़ी प्रसिद्धि दिलाई, जो आज भी अद्वितीय है और प्रेमचंद द्वारा लिखी गई कहानियों और उपन्यासों को आज भी लोग बहुत सराहते हैं। उन्होंने सरल, स्पष्ट और प्रभावशाली रूप से समाज की सच्चाइयों, कुरीतियों, और समस्याओं को बिना किसी झिझक के प्रस्तुत किया. उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में 'गोदान', 'गबन', 'कर्मभूमि' और 'निर्मला' शामिल हैं, जबकि उनकी कहानियाँ 'पूस की रात', 'कफ़न' और 'ईदगाह' बेहद लोकप्रिय हैं। उनकी रचनाओं का उद्देश्य पाठकों को न केवल कहानी सुनाना, बल्कि उन्हें समाज के जटिल मुद्दों पर सोचने के लिए भी मजबूर करना । प्रेमचंद की रचनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी अपने समय में थीं, क्योंकि वे मानव जीवन की मूलभूत समस्याओं और भावनाओं को छूती हैं।      

प्रेमचंद के द्वारा लिखी हुई कुछ प्रसिद्ध कवितायें 

ख्वाहिशे

ख्वाहिश नहीं मुझे,

मशहूर होने की,

आप मुझे पहचानते हो,

बस इतना ही काफी है,

अच्छे ने अच्छा,

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