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तुलसीदास: शब्दों में सम्मिलित जीवन का सत्य

‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान। 

पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥

भारत की इस पवित्र भूमि पर अनेक महान संतों ने जन्म लिया, जिन्होंने अपने ज्ञान और उपदेशों से समाज को नई दिशा दी। आज के इस भागदौड़ भरे जीवन में, जहां लोग भौतिकता और तनाव से घिरे हुए हैं, इन संतों के उपदेश और विचार हमारे लिए मार्गदर्शक बन सकते हैं। संतों ने अपने जीवन और ज्ञान के माध्यम से आत्मसाक्षात्कार, सेवा, प्रेम और सत्य का मार्ग दिखाया। आज के युग में, जब हम तकनीकी और भौतिकता के पीछे भाग रहे हैं, संतों के उपदेश हमें ध्यान, योग, और सेवा के माध्यम से आंतरिक शांति प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं। इन विचारों को अपनाकर हम अपने जीवन को अधिक सार्थक और सुखमय बना सकते हैं। इन्ही महान संतो में एक गोस्वामी तुलसीदास हैं| 

उदाहरण के लिए तुलसीदास जी का यह दोहा: 

"परहित सरिस धर्म नहीं भाई।

परपीड़ा सम नहीं अधमाई।।"

इस दोहे में तुलसीदास जी बताते हैं कि परोपकार से बड़ा कोई पुण्य नहीं होता है। दूसरों का भला करना सबसे बड़ा धर्म है और दूसरों को कष्ट पहचाना सबसे बड़ा पाप है। आज के इस स्वार्थ और प्रतिस्पर्धा से भरे युग में जहां मानवीय मूल्य कम होते जा रहें हैं, यह हमे सिखाता है कि हमें अपने व्यक्तिगत लाभ से ऊपर उठकर समाज और दूसरों की भलाई के लिए भी सोचना चाहिए।

उनका जन्म 1532 ईस्वी को उत्तर प्रदेश में हुआ था। वे हिंदी साहित्य के अद्वितीय कवी, संत और श्री राम के परम भक्तों में से एक थे। उन्हें आदिकवि बाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास ने अनेक ग्रंथों की रचना की जिसमें "रामचरितमानस" सबसे प्रमुख है। यह ग्रंथ भगवान राम के जीवन पर आधारित है और अवधी भाषा में लिखा हुआ है। इसमें उन्होंने श्री राम के जीवन की कथाओं का वर्णन किया है। "रामचरितमानस" की सरल और भावनात्मक भाषा ने इसे जन-जन तक पहुँचाया। यह ग्रंथ भारतीय संस्कृति और समाज में बहुत प्रभावशाली है और लोग नित्य रूप से इसका पाठ करते हैं। उन्

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