
नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर है,
सूर्य-चंद्र युग मुकुट मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह फूल तारे मंडन हैं,
बंदी जन खग-वृंद शेष फन सिंहासन हैं!
करते अभिषेक पयोद हैं बलिहारी इसे वेष की,
है मातृभूमि! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की|
-(मैथिली शरण गुप्त)
भारत की इस भूमि पर अनेक साहित्यकारों ने जन्म लिया, जिन्होंने अपने साहित्यिक योगदान के माध्यम से भारतीय संस्कृति को समृद्ध करने का काम किया है। जिस प्रकार से एक चित्रकार रंगों के माध्यम से अपनी कल्पनाओं को उड़ान देता है और उन कल्पनाओ को अपने ढंग से कागज पर उकेरता है और लोगों तक पहुंचाता है, ठीक उसी प्रकार से एक साहित्यकार अपनी रचनाओं से समाज की विविधता, संघर्ष और आशाओं को अपने-अपने अंदाज में और शब्दों के सहारे कागज पर उकेरता है। उनके जन्म और पुण्यतिथि के अवसर पर, यह महत्वपूर्ण है कि हम उनके साहित्यिक योगदान को पहचानें और उसकी गहराई को समझें। इन साहित्यकारों ने न केवल अपनी लेखनी से समाज के विभिन्न पहलुओं को सामने रखा, बल्कि उनकी रचनाएँ आज भी हमें प्रेरित करती हैं और हमारे सांस्कृतिक धरोहर को संजोए हुए रखती हैं। उनकी रचनाएँ समय के साथ अमर हो गई हैं और भारतीय साहित्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
मैथिलीशरण गुप्त (3 अगस्त,1886 -12 दिसंबर,1964)
मैथिलीशरण गुप्त का नाम हिंदी साहित्य जगत में एक ऐसे कवि के रूप में लिया जाता है, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति, इतिहास और आदर्शों को उजागर किया। उनका जन्म 3 अगस्त, 1886 को उत्तर प्रदेश के झाँसी में हुआ था। वे खड़ी बोली के पहले महत्वपूर्ण कवि थे। पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी को अपनी प्रेरणा मानकर उन्होंने अपनी रचनाओं में खड़ी बोली को खास प्राथमिकता दी। वे भारत के उन महान कवियों में से एक माने जाते हैं जिनकी कविताएँ राष्ट्रप्रेम, सामाजिक चेतना और मानवता के आदर्शों से ओतप्रोत हैं। उनकी कविताओं का लेखन का सफर 12 वर्ष की आयु से ही शुरू हो गया था। उन्होंने 12 वर्ष की आयु में कनकलता नाम से ब्रज भाषा में कविताएँ लिखना शुरू किया। उनका पहला कविता संग्रह ‘रंग में भंग’ था, जिसने उन्हें काफी सुर्खियाँ प्रदान कीं। मैथलीशरण गुप्त की ज्यादातर रचनाएं रामायण, महाभारत, बौद्ध कथाओं और धार्मिक नेताओं के जीवन पर आधारित हैं। उनकी रचनाओं में देशभक्ति, समाज सुधार और राजनीति की झलक भी मिलती है। उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘भारत-भारती’, ‘साकेत’, ‘जयद्रथ वध’, ‘पंचवटी’ और ‘द्वापर’ शामिल हैं।
उनके द्वारा लिखी गई प्रमुख काव्य संग्रह 'भारत-भारती'
भारत-भारती, जिसने उनकी प्रसिद्धि में चार-चाँद लगा दिए। भारत-भारती हिंदी साहित्य में बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली रचनाओं में से एक है। यह एक काव्य संग्रह है जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लिखी गई थी और इसमें राष्ट्रीयता, संस्कृति और सामाजिक मुद्दों का गहन चित्रण देखने को मिलता है। इसने न केवल साहित्यिक क्षेत्र में, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। इस काव्य संग्रह ने स्वतंत्रता संग्राम के सैनानियों और आम जनता में देशभक्ति की भावना को प्रबल कर दिया था। इसके काव्यांश जन-जन के हृदय में बस गए और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इसे गाया और पढ़ा गया। इस काव्य संग्रह का प्रभाव काफी गहरा और व्यापक रहा। इस काव्य संग्रह के लिए महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की पदवी प्रदान की थी। साहित्य जगत में उन्हें दद्दा कहकर संबोधित किया जाता था और उनकी जयंती को प्रत्येक वर्ष ‘कवि दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
उनके द्वारा लिखी गई कुछ प्रमुख कविताएँ:
भाषा का संदेश
भाषा का संदेश सुनो, हे
भारत! कभी हताश न हो।
बता क्या है फिर अरुणोदय से
उज्जवल भाग्याकाश न हो॥
दिन खोटे क्यों न हों तुम्हारे किंतु आप तुम खरे रहो,
साथ छोड़ दे क्यों न सफलता किंतु धैर्य तुम धरे रहे।
ख़ाली हाथ हुए, हो जाओ, पर साहस से भरे रहो,
हरि के कर्मक्षेत्र! हरे हो और सर्वदा हरे रहो॥
बात क्या कि फिर देश तुम्हारा
पूरा पुनर्विकाश न हो।
भाषा का संदेश सुनो, हे
भारत! कभी हताश न हो॥
मार्ग सूझते नहीं, न सूझे, किंतु अटल तुम अड़े रहो,
आगे बढ़ना कठिन हुआ तो हटो न पीछे, खड़े रहो।
विविध बंधनों में जकड़े हो, रहो, किंतु तुम कड़े रहो,
जी छोटा मत करो, बड़ों के वशंज हो तुम बड़े रहो॥
बात क्या कि फिर यहाँ तुम्हारा
पावन पूर्व प्रकाश न हो।
भाषा का संदेश सुनो, हे
भारत! कभी हताश न हो॥
तुम में हो या न हो शेष कुछ पर हो तो तुम आर्य अभी,
सूख गया तनु तक तो सूखे, रक्त-मांस हो या कि न भी।
अरे, हड्डियाँ तो शरीर में बनी हुई हैं वही अभी—
जिनसे विश्रुत वज्र बना था, सिद्ध हुए सुर-कार्य सभी!
बात क्या कि फिर देश तुम्हारे
पाप पतन का नाश न हो।