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भारतीय संस्कृति में नारी का महत्व!


यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:

-मनुस्मृति 


नारी एक ऐसा शब्द है जो इस संसार के अस्तित्व की व्याख्या करता है और सृजनात्मक शक्ति का प्रतिक है जिसके बिना संसार की कल्पना करना असंभव है। आज के इस लेख का उद्देश्य नारी के अस्तित्व की परिभाषा करना नहीं है क्यूंकि जो सर्वत्र का आधार हो उसकी व्याख्या करना असंभव है। इस लेख का उद्देश्य भारतीय संस्कृति में नारी के महत्त्व का परिचय देना है। 

आज नवरात्रों का नौवां दिन है जब हर घर में कन्या पूजन की जा रही है माता की चौकियां लग रहीं हैं उपवास रखें जा रहा हैं। नवरात्रों के ये पावन दिन नारी शक्ति का प्रतिक हैं भारतीय सभ्यता में नारी को सर्वोच्या स्थान दिया जाता रहा है।

 प्राचीन काल से ही नारी सम्मान विद्यमान है। ज्ञान की देवी माँ सरस्वती व धन वैभव सुख शांति का प्रतिक माँ लक्ष्मी तो वहीं शक्ति और नारी के आंतरिक ऊर्जा का प्रतिक माँ काली जो इस सभ्यता में प्राचीन काल से पूजी जाती हैं वास्तव में किसी भी नारी के असंख्य रूपों को दर्शाती हैं। नारी कभी सिंहनी, कभी चंडी, कभी विलासिता की प्रतिमा, कभी त्याग की देवी बनती है। 

शास्त्रों और साहित्य से यह मालूम हुआ कि वैदिक युग में नारी को बेहद सम्मान प्राप्त था। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान को पत्नी के बिना अधूरे माना जाता था ,जो रामायण में भी देखने को मिला जब सीता के न होने के कारन उनकी प्रतिमा को उनके स्थान पर रखा गया और राम ने अश्वमेध यज्ञ पूर्ण किया।आज भी किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में पत्नी का होना अनिवार्य है। 


कत बिधि सृजीं नारि जग माहीं। पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं॥

भै अति प्रेम बिकल महतारी। धीरजु कीन्ह कुसमय बिचारी॥

गोस्वामी तुलसीदास (रामचरित मानस )



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