कहां तो तय था चरागां हर घर के लिए,
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए
साहित्य जगत के सर्वश्रेष्ठ ग़ज़ल सम्राट दुष्यंत कुमार जी की पत्नी राजेश्वरी देवी जी का रविवार की देर रात भोपाल में निधन हो गया। उनके बेटे ने बताया कि राजेश्वरी देवी जी की सेहत काफ़ी लम्बे समय से अस्वस्थ थी। राजेश्वरी देवी जी सहारनपुर जनपद के गांव डंगहेड़ा की रहने वाली थी, उनका दुष्यंत कुमार जी से विवाह 30 नवंबर, 1949 को हुआ था। उनका अंतिम संस्कार भोपाल के आदित्य एवेन्यू, एयरपोर्ट रोड, भोपाल में किया जाएगा।
साहित्य जगत के सर्वश्रेष्ठ ग़ज़ल सम्राट दुष्यंत कुमार जी की पत्नी राजेश्वरी देवी जी का रविवार की देर रात भोपाल में निधन हो गया। उनके बेटे ने बताया कि राजेश्वरी देवी जी की सेहत काफ़ी लम्बे समय से अस्वस्थ थी। राजेश्वरी देवी जी सहारनपुर जनपद के गांव डंगहेड़ा की रहने वाली थी, उनका दुष्यंत कुमार जी से विवाह 30 नवंबर, 1949 को हुआ था। उनका अंतिम संस्कार भोपाल के आदित्य एवेन्यू, एयरपोर्ट रोड, भोपाल में किया जाएगा।
'एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है,
आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है'
इस शेर में गुड़िया उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए है। इसी ग़ज़ल की अगली पंक्तियों में दुष्यंत कह जाते हैं कि
'कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए,
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदुस्तान है।'
दुष्यंत कुमार बाग़ी कवी होने के साथ एक प्रेरक कवी भी थे। उनकी ग़ज़ल "हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए" हर नए क्रांति चाहने वाले के लिए एक प्रेरणा का स्रोत है। आपने यह ग़ज़ल को गीत के रूप में गाते हुए कई राजनेताओं और क्रांति चाहने वालो को देख होगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को अपने शुरुआती दिनों में इस गीत को कई बारी गाते देखा गया है|
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए