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छठ पर्व का महत्त्व

छठ पर्व का बिहार में अत्यधिक महत्त्व है और यह राज्य की संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। यह पर्व मुख्यतः सूर्य देव और छठी मैया की आराधना के लिए मनाया जाता है, जिसमें भक्तगण सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं और उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करते हैं। बिहार की भूमि पर यह त्योहार सदियों से मनाया जाता रहा है और इसे वहां के लोगों की आस्था, श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।

इस पर्व का मुख्य आकर्षण यह है कि इसे बहुत ही साधारण तरीके से और पूरी पवित्रता से मनाया जाता है। लोग अपने घरों और घाटों को साफ-सुथरा रखते हैं और कई दिन तक उपवास रखते हैं। महिलाएं और पुरुष दोनों ही व्रत करते हैं, और इसके पीछे की भावना है कि सूर्य देव और छठी मैया से सुख, समृद्धि और संतोष का आशीर्वाद मिले।

साहित्य और संगीत: छठ का उल्लेख बिहार के साहित्य, कविताओं और गीतों में खूब मिलता है। इस पर्व पर कई प्रसिद्ध लोकगीत गाए जाते हैं, जो इस पर्व के भावनात्मक और सांस्कृतिक पहलुओं को दर्शाते हैं। छठ के गीतों में सबसे लोकप्रिय गायिका शारदा सिन्हा हैं, जिन्होंने छठ के पारंपरिक गीतों को अपनी मधुर आवाज़ में गाया है और उन्हें लोकप्रिय बनाया है। शारदा सिन्हा का नाम छठ पर्व से इतना जुड़ चुका है कि उनके गीत इस पर्व का पर्याय बन चुके हैं। उनके गाए गए गीत "केलवा के पात पर उगेलन सूरज मल गोसाईं" और "हो दीनानाथ" जैसे गीत हर वर्ष छठ पर्व के दौरान गाए जाते हैं और लोगों के दिलों में विशेष स्थान रखते हैं।

शारदा सिन्हा ने छठ के गीतों को न केवल बिहार में बल्कि पूरे देश में पहचान दिलाई है। उनके गीतों में एक अनूठी मिठास और लोकसंस्कृति का प्रभाव है, जो सीधे दिल को छू जाता है।


छठ के विषय पर बेहतरीन कविता (/कविताएँ) | Kavishala


YourStory से श्रद्धा शर्मा ने इंस्टाग्राम्म में कुछ Reels के जरिये, छठ पर्व का "क्यों और कैसे" बताने का प्रयास किया:


पहले दिन को ‘नहाय-खाय’ कहा जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य शुद्धता और अनुशासन को अपनाना होता है। इसमें स्नान कर के शरीर को पवित्र किया जाता है और फिर सादा, सात्विक भोजन किया जाता है। यह भोजन बिना लहसुन-प्याज के, शुद्ध घी में बना होता है, जिससे मन और शरीर दोनों को शुद्ध रखा जा सके।

छठ पूजा के दूसरे दिन, जिसे खरना या लोहंडा कहा जाता है, शुद्धता, भक्ति और आभार का दिन मनाया जाता है।
आज के दिन हम उपवास रखते हैं, खीर बनाते हैं, और डूबते सूरज को अपनी प्रार्थना अर्पित करते हैं, विनम्रता और आशीर्वाद की आशा को अपनाते हैं।
यह परंपरा हमें अपनी जड़ों से जोड़ती है, हमें शक्ति और आभार से भर देती है। इस खरना के अवसर पर सभी के जीवन में शांति, समृद्धि और खुशियाँ आएं।
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