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समाज को आइने की चकाचौंध में रखने वाले दमदार शायर अकबर इलाहाबादी

दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं

बाज़ार से गुज़रा हूं ख़रीदार नहीं हूं

-अकबर इलाहाबादी 


आज एक ऐसे शायर का जन्मदिन है जिसने शायरों की दुनिया में अपने नाम की इस कदर छाप छोड़ी जिसे मिटा पाने वाला आज तक न हुआ। हम बात कर रहे हैं अकबर इलाहाबादी की जिनकी कलम में उत्तरी भारत में रहने-बसने वालों की तमाम मानसिक व नैतिक मूल्यों, उनकी जीविका उनके नजरिये और राजनीति और हुकूमत की गवाही मौज़ूद थी। उनके शेर उनके ग़ज़ल उनकी जिंदगी का आइना थे। हास्य व्यंग सहारे वो राजनीति और हुकूमत की नीतियों पर वार किया करते थे

कौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ

रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ

-अकबर इलाहाबादी 


आज के वक़्त में जहाँ नारी सशक्तिकरण की बात की जाती है महिलाओं की आज़ादी और परदे, घूंघट, बुरके में बंद करने जैसी तरकीबों को जड़ से खत्म करने की बात की जाती है इसकी शुरुआत ग़ज़लों शायरों से अकबर साहब उसी दौर में कर रहे थे जिसपर उन्होंने एक गजल कुछ यूँ लिखा :


बेपर्दा नज़र आईं जो कल चंद बीवियां

अकबर ज़मीं में हैरते क़ौमी से गड़ गया

पूछा जो उनसे आपका परदा वो क्या हुआ

कहने लगीं कि अक्ल पे मर्दों की पड़ गया

-अकबर इलाहाबादी 


हंगामा है क्यों बरपा इलाहाबादी की सबसे मशहूर लिखी गई गजल रही जिससे गुलाम अली ने गाया था वहीं उनकी सबसे प्रसिद्ध कव्वाली तुम एक गोरख धंधा हो को नुसरत फतेह अली खान ने अपनी आवाज दी थी।

अकबर साहब का जन्म 16 नवंबर 1846 में उत्तरप्रदेश के अल्लाहाबाद में हुआ था । इनका पूरा नाम सैयद अकबर हुसैन था । इनके पिता का नाम मौलवी तफ़ज़्ज़ुल हुसैन था । जो कि पर्सिया से एक आर्मी थे । वो बाद में हिंदुस्तान आ कर बस गए। अकबर ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने पिता द्वरा घर पे ही ग्रहन की। उन्होंने महज़ १५ साल की उम्र में खुद से दो या तीन साल वरिष्ठ लड़की से शादी की थी और जल्द ही दुरसा विवाह भी कर लिया।अकबर ने वकालत की अध्ययन करने के बाद बतौर सरकारी कर्मचारी कार्यरत हुए


शेख जी निकले न घर से और ये फरमा दिया

आप बीए पास हैं तो बंदा बीवी पास है

-अकबर इलाहाबादी 


अकबर साहब कितने चिंतन वाले व्यक्ति थे इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब एक बार वह बीमार पड़ गये। उनकी आँखों की रोशनी जाती रही। जिसके इलाज़ के लिए एक अँग्रेज़ डॉक्टर मैनार्ड को बुलाया गया जिसने आँखों का ऑपरेशन किया और उस मन्दी के दौर में भी 200 रुपए फीस ले गए। जब अकबर साहब के बेटे ने पूछा, "अब्बाजान, अब तबियत कैसी है?"अकबर साहब ने कहा, "रोशनी आए तो हम देखें अपना हिसाब। वह तो दो सौ ले गए आँखों पे पट्टी बाँध कर।" वो शायर थे, शोर नहीं मचाते थे। ख़वास और अवाम दोनों उनको अपना शा

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