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यारो घिर आई शाम चलो मयकदे चलें - कृष्ण बिहारी 'नूर'

यारो घिर आई शाम, चलो मयकदे चलें याद आ रहे हैं जाम, चलो मयकदे चलें दैरो-हरम पे खुल के जहाँ बात हो सके है एक ही मुक़ाम, चलो मयकदे चलें अच्छा, नहीं पियेंगे जो पीना हराम है जीना न हो हराम, चलो मयकदे चलें यारो जो होगा देखेंगे, ग़म से तो हो निजात ल
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