
यारो घिर आई शाम, चलो मयकदे चलें
याद आ रहे हैं जाम, चलो मयकदे चलें
दैरो-हरम पे खुल के जहाँ बात हो सके
है एक ही मुक़ाम, चलो मयकदे चलें
अच्छा, नहीं पियेंगे जो पीना हराम है
जीना न हो हराम, चलो मयकदे चलें
यारो जो होगा देखेंगे, ग़म से तो हो निजात
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