मै प्रेषित प्रेम अनोखा हूँ
तू पत्र स्याही की लाली है
मै मन का मारा व्याकुल हूँ
तू मन के ज्योति की लाली है
मै तो काली रजनी सा हूँ
तू चाँदनी रंग की प्याली है
तू वही कुमुद,जूही है
जिसके सुगंध का मारा हूँ
तू वही बसंती पगली पवन है
जिसमे घुलने को तरसा हूँ
तू वही निर्झरा शीतल जल है
तू पत्र स्याही की लाली है
मै मन का मारा व्याकुल हूँ
तू मन के ज्योति की लाली है
मै तो काली रजनी सा हूँ
तू चाँदनी रंग की प्याली है
तू वही कुमुद,जूही है
जिसके सुगंध का मारा हूँ
तू वही बसंती पगली पवन है
जिसमे घुलने को तरसा हूँ
तू वही निर्झरा शीतल जल है
Read More! Earn More! Learn More!