सब्र -ए -सदर का कोई शहर से आया है
जमाने मे सराबोर होकर अपने घर आया है
खलिश खूब थे जहन के जर्रे जर्रे में
तख्त के दिवारों मे दफ्न होकर अपने घर आया है
इजाजतन मंजूर नही था किसी को
फिर भी सब छ
जमाने मे सराबोर होकर अपने घर आया है
खलिश खूब थे जहन के जर्रे जर्रे में
तख्त के दिवारों मे दफ्न होकर अपने घर आया है
इजाजतन मंजूर नही था किसी को
फिर भी सब छ
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