हैरान क्यों तुम मिल के मुझसे
हर बार कुछ ना कुछ पूछते हो
जितना पढ़ना हो तुम भी पढ़ लो
किताब मेरी खुली हुयी है॥
आरोप है मुझपे ये सबका
कि बकबक मैं ही करता बहुत हूँ
मैं उनके हिस्से का बोलता हूँ
ज़ुबान जिनकी सिली हुयी है॥
अभी-अभी तो शुरू सफर है
अभी तो मंजिल दूर बहुत है
उतर गये वे सभी मुसाफिर
जिन्हें इजाजत मिली हुयी है॥
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