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सिर्फ ढकोसलों को देखा हैं..

मैंने आज की पीढ़ियों को भी

रूढ़ियों की बुनियादों पर

पूर्वाग्रही हंसी हंसते देखा हैं।

मैंने आधुनिकता के भ्रम को

एकपल में टूटते देखा हैं

उसके खोखले अर्थ में ,

लोगों को उलझते देखा हैं।

मैंने स्मार्टफोन वाले लोगों को भी,

काला गौरा करते देखा हैं 

समर्थन रंगभेद का करते देखा हैं।

मैंने सेल्फी वाले चेहरों को भी,

ग़रीबी पर हंसते देखा हैं।

अंहकार को आधुनिकता का

 रूप धरते
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