तुमने कहा, हमने आज़ादी पाई,
पर क्या ये वही आज़ादी है,
जो मरी हुई आंखों में झलकती है?
जहां अस्पताल की सफेद दीवारें
किसी श्मशान से कम नहीं लगतीं।
वो आज़ादी, जिसे हमने पूजा था,
क्या यही है वो आज़ादी,
जहां न्याय की देवी अपनी
आंखों पर पट्टी बांध कर
चुपचाप तमाशा देखती है?
कहते हो, ये लोकतंत्र है,
जहां हर इंसान की आवाज़ सुनी जाती है,
पर कहां है वो आवाज़,
जो दीवारों के भीतर दबी रह जाती है और
किसी संसद के दरवाजे पर दस्तक नहीं देती।
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