" वाक़ई जहाँ कोई नहीं रहता "- कामिनी मोहन।'s image
103K

" वाक़ई जहाँ कोई नहीं रहता "- कामिनी मोहन।

" वाक़ई जहाँ कोई नहीं रहता "

वाक़ई जहाँ कोई नहीं रहता
वहाँ ज़िंदगी के गीत गुनगुनाने
आँखों को फेर चलीं
आख़िरकार सब अधूरा छोड़कर क्यूँ चलीं।

सुनना, बोलना, तोल कर फिर बोलना
सदाओं का पीछा करना
तराज़ू के पलड़े के साए में
सब चीज़ों को रखना।

जो थे अधिक
उनका हाथ पकड़ना,
जो थे कम उन्हें कंधे पर बिठाना।

फिर क्यूँ बेज़ुबान बनकर
जाते वक़्त सब छोड़ चली,
तराज़ू के पलड़े को तोड़ चली।

उसके होने से दीवारों का था होना
घर के कोनों का था अपना बिछौना।

उसके होने से होता था आँगन
ख़ुशबू तुलसी की थीं मनभावन
दीए की लौ में चाँदनी-सा खिलता मन।

जिसके होने को आशीर्वाद
न होने को अभिशाप माना जाता है
जिसे किसी शब्द में नहीं गढ़ा जाता है।

Read More! Earn More! Learn More!