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टिकाऊपन -- कामिनी मोहन।

मेरी साँसे:
झोंका है प्राण का आती और जाती हैं
समय की सीमा में बंधकर
काल का हलफ़नामा पेश कर जाती हैं
टिकाऊ है
पर टिक कर रह नहीं पाती हैं।

हवाओं से मेल करना है इनकी आदत
बस चलते रहना है इनकी फ़ितरत
इन्हें रास नहीं आता ठहरना
कुम्भ को भरकर थोड़ा जो कभी ठहर जाती है
प्रबल वेग से हवाओं में
बस घुल ही जाना चाहती है।

क़ैद होना इन्हें नहीं क़बूल
पर इन्हें
अस्थि और मज्जा में शरण लेना पड़ता है
सहस
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