तहक़ीक़ात करती ख़बरों के
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तहक़ीक़ात करती ख़बरों के - कामिनी मोहन।

जीवन में प्रवेश करते ही शुरु होती है तलाश
प्रेम, त्याग, बलिदान, समझौते, समस्याएँ और आशंकाओं के उत्तर की
लेकिन सब कविताएँ हैं सिफ़र की
जो कहीं किसी गिनती में नहीं गिनी जाती हैं।

रोज़ इत्मिनान से
अख़बार को बार-बार पढ़ने के बावजूद
अख़बार को मोड़कर रखते ही
ज़िंदा स्मृतियों को देखने लग जाते हैं
कहीं कुछ और महत्वपूर्ण के छूट जाने की बात
सोचने लग जाते हैं।

ज़्यादा से ज़्यादा अमानवीय दृश्य
जो ज़ेहन के काम नहीं आते हैं
उस ख़बर के ख़बरदार कहते जाने के बाद भी
अमानवीयता में ज़िंदा रह जाते हैं।

तहक़ीक़ात करती ख़बरों के
अक्षर घूमते रहते हैं
दुपहरी के फूल की तरह
खिलते और सांझ पहर से पहले
गुज़रते समय की बात हो जाते हैं।

फिर भी चमचमाती रोशनी में <
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