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प्रेम- (उद्धरण) - कामिनी मोहन।

प्रेम है अपने अनावृत रूप में
सदैव विद्यमान कुछ और नहीं
सिर्फ़ एक भावना, एक अनुभूति
की तरह एक ख़ालिस कविता।

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