प्रेम की ख़ुराक
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प्रेम की ख़ुराक -© कामिनी मोहन।

मरूस्थल के जीव-जंतुओं के लिए
ज़रूरी है गर्म रेत
उनके लिए इसमें
असमर्थता की कोई बात नहीं
यह अनुकूलता है।
घर कर लेता है जो स्वभाव में
कभी छूटता नहीं
फिर भी आत्मकेंद्रित के भीतर
जो भी पल रहा है
एकाकी दृष्टि लिए न देखना
प्रतिकूलता है।

नहीं है जटिल
नेक-अनेक को देखना।
आकाश से घिरा हृदय शरीर
असंख्य स्मृतियों के
अगणित वज़न को ढोते हुए देखता है।

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