
" प्रेम और विश्वास के हलफ़नामे "
- कामिनी मोहन।
जीवन-यापन की ज़रूरत हो पूरी,
चाहत सबकी एक जैसी है।
बाज़ार और ख़रीदार हैसियत के हैं,
पर पेट की भूख एक जैसी है।
अबूझ प्रपंच संवाद करते नहीं,
यह न्यून महत्वाकांक्षा जैसी है।
दो-राहे एक दूसरे को देखते नहीं,
यातनाएँ स्मृतियों में ख़बर जैसी है।