
गूँज उठे
अपने आगे
देह का रुतबा ठीक है
लोग चल पड़े
आगे-पीछे ये भी ठीक है।
क़ाएम न रहे इक दिन कुछ भी
क्या करना है
हवाओं के रुख़ से
बदले प्रकृति
क्यूँ डरना है?
सत् रज् तम् के
ताप से तप कर
क्यूँ रहना है?
बंधन है सब
इससे परे तुम्हें चलना है
निर्विकल्प, निर्विशेष है यहाँ सब
सबको निर्गुण होना है
सीमित समय तक टिके यहाॅं सब
अपने आगे
देह का रुतबा ठीक है
लोग चल पड़े
आगे-पीछे ये भी ठीक है।
क़ाएम न रहे इक दिन कुछ भी
क्या करना है
हवाओं के रुख़ से
बदले प्रकृति
क्यूँ डरना है?
सत् रज् तम् के
ताप से तप कर
क्यूँ रहना है?
बंधन है सब
इससे परे तुम्हें चलना है
निर्विकल्प, निर्विशेष है यहाँ सब
सबको निर्गुण होना है
सीमित समय तक टिके यहाॅं सब
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