कुछ अधूरा-सा है
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कुछ अधूरा-सा है -© कामिनी मोहन।

मैंने सिर्फ़ सोचा और 
वो ख़ुशबू मेरे ज़ेहन में ताज़ा हो गई है।

धूप नहीं है
कुछ मिट्टी छिटकी हुई है
बारिश अभी पूरी तरह से हुई नहीं है।

गंध अभी घेरे में है
मोड़कर रखा रूमाल जेब में पड़ी हुई है।

इत्र बंद है उसमें
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