ख़्याल द्रुत  हो  या  कि  विलंबित- कामिनी मोहन।'s image
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ख़्याल द्रुत  हो  या  कि  विलंबित- कामिनी मोहन।

ख़्याल द्रुत  हो  या  कि  विलंबित,
सुने हम हर्षनाद निनाद हर कहीं।
सुरभित   वसंत   न   हो   खण्डित,
धवल  पुष्प व्यापित हो  हर कहीं।

रंजित वर्जित कुछ भी हो भले कहीं,
जीवन रुके नहीं चलता रहे हर कहीं।

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