231. कामिनी मोहन के दोहे
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231. कामिनी मोहन के दोहे "दोहा"

देखो   यारो   रेल   को,   जैसे   भागे   साँप 
आफत टली जान बची, हम तो गए थे काँप।।1।। 

चढ़ते  सूरज  की  धूप, कोई  रोक  न  पाता।
नित बदलते जीवन को, कोई समझ न पाता।।2।। 

देह  घर  के  कमरे  में,&nb
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