"इस बाग़ का फूल"
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"इस बाग़ का फूल" -© कामिनी मोहन

इस बाग़ का फूल गोलियों से छलनी हुआ था,
चीख़-पुकार सुनकर गगन कम्पित हुआ था।

ख़ून  से  लथपथ बाग़ आज भी पड़ा हुआ है,
दाग़ देखकर रोता हैं दिल आँसू थमा हुआ है।

क्यूँ आह नहीं सुनी जो तड़तड़ गोलियाँ बरसाता था,
निहत्थे बच्चों, बूढ़ों, महिलाओं को मार गिराता  था।

हत्यारा जनरल डायर अहंकार से इतराता था,
कहा रास्ता संकरा था, नहीं तो, मैं तोप चलवाता था।

रौलेट का विरोध जालियाँवाला बाग हत्याकाण्ड कहलाता है,
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