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इंतिज़ार में वक़्त के ज़ाए का-Kamini Mohan

इंतिज़ार में वक़्त के ज़ाए का
अफ़सोस रह जाता है,

वक़्त बीत जाने पर
अपने लिए वक़्त बचा न सकने का
अफ़सोस रह जाता है,

आँखों को नींद का धोखा मिले तो
रात बीत जाने का
अफ़सोस रह जाता है,

तट पर पहुँचते ही दूर जा चुकी नय्या को देख
जल्दी न पहुँचने का
अफ़सोस रह जाता है,

कमज़ोर
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