हैं क़िस्म-क़िस्म की मंजरियाँ
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हैं क़िस्म-क़िस्म की मंजरियाँ -© कामिनी मोहन।

वो जिसने अपनी सुंदर क़लम से
धरती पर सब रच दिया
फिर मनुष्य के हाथ पकड़
उसके मर्म को छू लिया।
ख़ुरदुरे पत्थर को तराशकर
उसे बोलना सिखाया
बहुरंगी पक्षियों के रंग को
कैनवस पर उतारना सिखाया।

उसने धरती को
अपने हाथों से बैलेंस करने को
कहीं ऊँचे हिमालय शिखर
कहीं छोटे पर्वत-पठार सब रख दिया।
समुद्र, नदिया, जल, जंगल, मरूस्थल और जमीन पर
अनेकानेक वृक्षों और फूलों का मानचित्रण किया।

हैं क़िस्म-क़िस्म की मंजरियाँ
उन्हें पनपने के लिए
मुफ़ीद वातावरण और परिवेश दिया।
उन्मुक्तता देने को
धरा के समस्त जनपद को
वंदनीय किया।

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