एक टीस ही ऐसी होती है
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एक टीस ही ऐसी होती है - © कामिनी मोहन।

एक टीस ही ऐसी होती है
जो अंतर में बस जाती है।
जब तक पूरा न हो
बाहर निकल न पाती है।

पहले-पहल एक गंध होती है
फिर अंतस् में घुल जाती है।
हृदय से आँखों में उतरकर
दृश्य बनकर रुक जाती है।

अतीत काफ़ी घटनामय दीखता है,
भविष्य मौन ही रहता है।
कुछ कह न
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