दूर से गूँजती,आती है आवाज़।जैसे मँडराते तूफ़ान की,हो कोई विचित्र साज़।डर के घोंसले से पक्षी,उड़ने की सोचता है।तोड़-फोड़ के परिवर्तन से,बचने की सोचता है।