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दर्द ही दर्द है- कामिनी मोहन।

दर्द ही दर्द है

दर्द    ही    दर्द    है,
कंक्रीट का जंगल है।
समंदर        समंदर
खारा     जल     है।

काँटा     चुभे     तो,
बदन  कुम्हलाता  है।
रोता  है  तड़पता  है,
चेहरा  ज़र्द होता  है।

घाव  

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