
आत्मीय स्मृति के झरे शब्द
बंद लिफ़ाफ़ों में
आत्मा के जल से भीगकर तरोताज़ा रहते हैं।
जीवन को तर-ब-तर करते हुए
कुछ माँगते कुछ देते हुए
सदाएँ देते रहते हैं।
शिलालेख की तरह
पुराने बक्से में रखी हुई कुछ चिट्ठियाँ अधूरी है।
शायद ख़ुद में समा लेती हैं सब
इसलिए चिट्ठियाँ कहती हैं
चिट्ठी को पढ़ा जाना ज्य़ादा ज़रूरी है।
सुख-दुख आप-बीती सुनी-कही बाते
जब आवन को कहकर नहीं आते
तब पढ़ने में शब्दों की गूँज
बंद लिफ़ाफ़ों में
आत्मा के जल से भीगकर तरोताज़ा रहते हैं।
जीवन को तर-ब-तर करते हुए
कुछ माँगते कुछ देते हुए
सदाएँ देते रहते हैं।
शिलालेख की तरह
पुराने बक्से में रखी हुई कुछ चिट्ठियाँ अधूरी है।
शायद ख़ुद में समा लेती हैं सब
इसलिए चिट्ठियाँ कहती हैं
चिट्ठी को पढ़ा जाना ज्य़ादा ज़रूरी है।
सुख-दुख आप-बीती सुनी-कही बाते
जब आवन को कहकर नहीं आते
तब पढ़ने में शब्दों की गूँज
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