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आशाओं के ढाँचे - कामिनी मोहन।

घर की चारदीवारी के चारों ओर
उँगलियों के स्पर्श से
शुभकामनाएँ अंकित थीं।
दीवार की हर ईंट के साथ
कामनाएँ नया रिश्ता
क़ायम करती थीं।

पर काल चक्र चलता रहा और
पीछे छूटी आशाएँ पीछे रहीं।
जो उनने चाहा वो
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