“एक शब्द !” बोलते ही
मेरे अंदर कुछ गूँज उठा
आकार-प्रकार लिए
आ खड़ा हैं मेरे अंतर्तम में
और मेरे वाह्य आवरण में।
शब्द की पूरी परिभाषा
ज़ेहन पर है ज़ाहिर
क़दम बढ़ाते हुए चल पड़ा है
अगले शब्द को जोड़ने को हैं आतुर
अभिमान-स्वाभिमान की यात्रा को तय करते हुए
दोनों हाथों और कंधे पर सामान ढोते हुए
चल पड़ा है।
मैं अपने चेहरे को भूल बैठा हूँ
पहचान को अनचीन्हा कर बैठा हूँ।
मेरे अंदर कुछ गूँज उठा
आकार-प्रकार लिए
आ खड़ा हैं मेरे अंतर्तम में
और मेरे वाह्य आवरण में।
शब्द की पूरी परिभाषा
ज़ेहन पर है ज़ाहिर
क़दम बढ़ाते हुए चल पड़ा है
अगले शब्द को जोड़ने को हैं आतुर
अभिमान-स्वाभिमान की यात्रा को तय करते हुए
दोनों हाथों और कंधे पर सामान ढोते हुए
चल पड़ा है।
मैं अपने चेहरे को भूल बैठा हूँ
पहचान को अनचीन्हा कर बैठा हूँ।
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